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अयोध्या की महिमा


सूर्यवंश के अस्त होने पर ८० वर्ष तक अयोध्या शक्तिशाली गुप्तों की राजधानी रही जिसका वर्णन अध्याय १० में है।

सोलङ्की राजाओं के विषय में कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं जिनसे विदित होता है कि यह लोग अयोध्या ही से पहिले दक्षिण गये और वहाँ सोलङ्की[१] (चालुक्य) राज्य स्थापित किया। वहाँ से गुजरात आये जहाँ अन्हलवाड़े को राजधानी बनाकर बहुत दिनों तक शासन करते रहे। परन्तु यह अभी तक निश्चित नहीं हुआ कि सोलङ्की जो अपने को चन्द्रवंशी मानते हैं अयोध्या के सिंहासन पर कब बैठे थे।

राजा साहेब सतारा के पास की एक वंशावली से विदित होता है कि चान्द्रसेनीय कायस्थ सरयूतट पर अयोध्या (अजोढा) और मणिपूर (आजकल का मनकापूर?) से गये थे।

अध्याय ९ में दिखाया जायगा कि पटने से दिल्ली तक एक भाषा (common language) का आविर्भाव कोशला की राजधानी से हुआ।

प्रसिद्ध इतिहास-मर्मज्ञ सी॰ वाई॰ वैद्य जी ने 'हिन्दू भारत के अन्त' में लिखा है कि अत्यन्त प्राचीन काल में अयोध्या में हिन्दी साहित्य की उत्पत्ति हुई।[२]

हमारे हिन्दू पाठकों को यह सुन कर आश्चर्य होगा कि मुसलमान भी अयोध्या को अपना बड़ा तीर्थ मानते हैं। मदीनतुल-औलिया नाम के उर्दू ग्रन्थ में जो थोड़े दिन हुये अयोध्या से प्रकाशित हुआ है यह लिखा है कि अयोध्या में आदम के समय से आजतक अनेक औलिया और पीर हुये हैं।


  1. रीवा के बघेल भी सोलङ्कियों की एक शाखा हैं।
  2. पृष्ठ ७३२।