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सूर्यवंश


४७ सुभास
४८ सुश्रुत
४९ जय
५० विजय
५१ ऋत
५२ सुतय
५३ वीतहव्य
५४ धृति
५५ बहुलाश्व
५६ कृति

महाभारत के पीछे इस राजवंश का पता नहीं लगता । इस राजवंश में इन दो राजाओं के नाम प्रसिद्ध हैं।

१ मिथि—श्रीमद्भागवतपुराण में लिखा है कि राजा मिथि ने यज्ञ प्रारम्भ करके वसिष्ठ को ऋत्विक् बनाया। वसिष्ठ ने कहा कि इन्द्र हमको वरण कर चुके हैं, जब तक उनका यज्ञ पूरा न हो जाय तुम ठहरे रहो। निमि ने कुछ न कहा और वसिष्ठ इन्द्र का यज्ञ कराने लगे। निमि ने वसिष्ठ की राह न देख कर दूसरे पुरोहित का बुला लिया, और यज्ञ करने लगे। इन्द्र का यज्ञ समाप्त करके वसिष्ठ जी लौटे तो निमि पर बहुत बिगड़े और उनको शाप दिया कि तुम्हारी देह पतित हो जाय। राजा ने भी उनको शाप दिया, और कहा तुमने लोभ के मारे धर्म का विचार नहीं किया। राजा और गुरु दोनों ने शरीर छोड़े। वसिष्ठ तो फिर उर्वशी के गर्भ से जन्मे और निमि की देह को मुनियों ने गन्ध-द्रव्य में रख दिया, और यज्ञ समाप्त होने पर देवताओं से कहने लगे कि आप लोग कहें तो निमि जिला दिये जाँय। निमि बोल उठे कि मैं अब देह के जंजाल में न फँसूँगा। देवताओं ने कहा अब यह विदेह होकर