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अयोध्या का इतिहास
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लगी गंगजल-सीकर संगा।
सोई वायु सेनन के अंगा॥
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बैठि सुमेरू छांह तेहि ठामा।
रघुदल वीर लह्यो विश्रामा॥
जो जंजीर सन नृप-दल-वारन।
बाँधे देवदारु तरु डारन॥
जोति डारि तहँ औषधि नाना।
भईँ तेल बिन दीप समाना॥
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चलत दुहूँ दिसि गोफन बाना।
उड़त आगि जहँ लगत पखाना॥
घोर युद्ध गिरिबासिन साथा।
यहि विधि कीन्हि भानुकुल नाथा॥
निज बानन उतसव-संकेतन।
करि इमि मन्द भानु-कुल-केतन॥
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जाकी जर पौलस्त्य हिलाई।
नृप सन जनु सोई अचल डेराई॥
निज जस अचल राज तहँ धारी।
सोई गिरि सन निज सेन उतारी॥
लौहित्या उतरत चतुरंगा।
काला गुरु सन बँधत मतंगा॥
लखि मनुवंश-भानु परतापा।
प्रागज्योति कर नरपति काँपा॥