अभी हमारे लिये इतना ही कहना काफी है कि कोशलराज्य की उत्तरीय सीमा हिमालय तक थी।
जब हम वा॰ रामायण अयोध्या काण्ड को देखते हैं तब हम अयोध्या के निर्माता मनु की इक्ष्वाकु की बताई हुई दक्षिणी सीमा का पता पाते है। स्यन्दिका जिसे आज-कल सई कहते हैं इस राज्य की दक्षिणी सीमा थी। यह नदी प्रतापगढ़ में बहती है और इलाहाबाद, फैजाबाद रेलवे लाइन को फैजाबाद से ६१ वें मील पर काटती है। इस प्रकार राज्य की चौड़ाई ८ योजन हो जाती है। एक योजन कुछ कम ८ मील का होता है। हमें कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं मिला जिससे हम कनिघम के कथन का अनुमोदन कर सकें कि घाघरा के उत्तर का देश कोशल कहलाता था। सई और गङ्गा के बीच का प्रान्त बाद में मिलाया गया होगा क्योंकि वाल्मीकि ने साफ-साफ कहा है कि सई और गङ्गा के बीच के ग्राम कुछ अन्य राजाओं और कुछ निषादराज के राज्य में थे। गुह निषादराज एक स्वाधीन राजा था यद्यपि उसने कहा है कि;
नहि रामात् प्रियतरो ममास्ति भुवि कश्चनः।
से बढ़कर मेरा और कोई प्रिय नहीं है"
पूर्व और पश्चिम की सीमा निर्धारण करना उतना सुगम नहीं है। मालूम होता है कि मिथिला और कोशल के बीच में और कोई राज्य नहीं था। बौद्धधर्म के दीघनिकाय और सुमगंलविलासिनी श्रादि ग्रन्थों के अनुसार १९०६ के[१] रायल एशियाटिक सुसाइटी के जर्नल में शाक्यों की उत्पत्ति का वर्णन इस प्रकार किया गया है––
("औकाकु इक्ष्वाकु) से तीसरं नृप के बहिष्कृत पुत्रों ने जाकर हिमालय पर्वत पर कपिलवसु (कपिलवस्तु) नाम नगरी बसाई।
कपिल ऋषि ने जो बुद्धदेव के पूर्वावतार माने जाते हैं उन्हें यह भूमि (बसु वस्तु) बताई थी। कपिल मुनि इन्हें हिमालय की तराई में सकसन्ध
- ↑ J R.A.S., 1906.