की खाई और उत्तुङ्ग पर्वत जिसके क़िले की दीवारें थीं। श्रावस्ती कोशल देश की राजधानी थी। प्रतापगढ़ जिले के तुशारनविहार भी जिसे कर्नल वोस्ट ने साकेत कहा है कोशल देश में था।
वाल्मीकि ने का रामायण के प्रारम्भ में कोशल इस प्रकार वर्णन केया है।
कोसलो नाम विदितःस्फीतो जनपदो महान्।
निविष्टः सरयूतीरे प्रभृतधनधान्यवान्॥
अर्थात् कोशल सरयू के किनारे एक धन-धान्यवान देश था, "निविष्टं" शब्द से ज्ञात होता है कि यह देश सरयू के दोनों किनारों पर था।
कनिंघम का कहना है कि कोशल का प्राचीन देश सरयू अथवा घाघरा द्वारा दो प्रान्तों में विभक्त था; उत्तरीय भाग को उत्तर कोशल और दक्षिण भाग को बनौध कहते थे। फिर इन दोनों के और दो भाग थे बनौध में पच्छिम राठ और पूरब राठ थे और उत्तरकोशल में राप्ती के दक्षिण में गौड़ और राप्ती या जिसे अवध में रावती कहते हैं उसके उत्तर को कोशल कहते थे। इनमें से कुछ के नाम पुराणों में भी पाये जाते हैं जैसे वायुपुराण में लिखा है कि रामचन्द्र जी के पुत्र लव कोशल में राज करते थे; और मत्स्य, लिङ्ग और कूर्म पुराणों में लिखा है कि श्रावस्ती गौड़ में थी। ये परस्परविरुद्ध कथन उसी क्षण समुचित गति से समझ में आजाते हैं जब हम जानते हैं कि गौड़ उत्तरकोशल का एक भाग था और श्रावस्ती के ग्बंडहर भी गौड़ में (जिसे अब गोंडा कहते हैं,) मिले हैं। इस प्रकार अयोध्या घाघरा के दक्षिण में बनौध या अवध की राजधानी थी और श्रावस्ती घाघरा के उत्तर में उत्तरकोशल की राजधानी थी।
खानच्चांग ने इस देश की परिधि ४००० ली (६६७ मील वतलाई है। कनिंघम के कथन की हम आगे चलकर आलोचना करेंगे।