आजकल की अयोध्या
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झार" या "मौवा झार" कहते हैं जिससे यह सूचित होता है कि रामकोट
के बनानेवाले मजदूरों के टोकरों का झाड़न है । जेनरल कनिंघम का
यह कहना है कि यह २०० फुट ऊँचे एक स्तूप का भग्नावशेष है और
वहीं बना हुआ है जहाँ बुद्धदेव ने अपने ६ वर्ष के निवास में धर्म का
उपदेश दिया था। उनका अनुमान है कि नीचे की भूमि शायद बौद्धों
के समय के पूर्व की हों और पक्का स्तम्भ अशोक ने बनवाया था। किन्तु
हिन्दुओं का विश्वास है कि जब लक्ष्मण जी को शक्ति लग गई और
हनुमान जी उस शक्ति के घात से लक्ष्मण को बचाने के लिये संजीवन
मूल लेने हिमालय गये और पर्वत को लेकर लौट रहे थे तो उसका एक
ढोंका यहीं गिर पड़ा था। दूसरा कथन यह भी है जैसा ऊपर लिखा जा
चुका है कि जब रामकोट के मजदूर काम कर चुकते तो अपनी टोकरियों
का भाड़न यहीं फेंक देते थे जिसका ढेर यही मणिपर्वत है।
हम दतून-कुंड का वर्णन कर ही चुके हैं। दूसरा ऐतिहासिक स्थान
सोनखर है । रघुवंश के पाठक जानते ही हैं कि रघु को एक ब्राह्मण को
बहुत सा सुवर्ण देना था जब कि उनका कोश खाली हो चुका था। उन्होंने
ठान लिया कि कुबेर पर चढ़ाई कर के उससे इतना सुवर्ण प्राप्त कर लेना
चाहिये ! कुबर ने डर के मारे रात में यहीं सुवर्ण की वर्षा कर दी।
अयोध्या में नवाब वजीरों के राज से आजतक हजारों मन्दिर बने
और नित नये बनते जाते हैं। इनका सविस्तर वर्णन श्री अवध की
झांकी में दिया जायगा जो तैयार हो रही है।
पृष्ठ:अयोध्या का इतिहास.pdf/८४
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