पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१०६ अलंकारचंद्रिका को त्यागकर रामजी की शरण को चला त्योंही सब निशिचर आयुहीन हो गये, फिर साधारण सिद्धान्त से “साधुओं की अवज्ञा सर्वकल्याण को विनष्ट करती हैं"--उसकी पुष्टि की गई । इसी प्रकार और भी जानो। २-हरि प्रताप गोकुल बच्यो, का नहिं करहिं महान । इसमें हरि प्रताप गोकुल बच्यो' यह विशेष बात 1 'का नहिं करहिं महान'-सामान्य बात से समर्थन है। ३-धूरि चढ़ी नभ पौन प्रसङ्ग ते कीच भई जल सङ्गति पाई । फूल मिले नृप पै पहुँचै कृमि कीटन संग अनेक व्यथाई ॥ चन्दन सङ्ग कुदारु सुगन्ध है निब प्रसंग लहै करुवाई । 'दास' जू देखो सही सब ठौरन संगति को गुन दोष सदाई ॥ इसमें प्रथम के तीन चरणों में विशेष बातें कहके चौथे चरण में साधारण सिद्धान्त द्वारा उन सबकी पुष्टि की गई है। पुनः- ४-दो०-कैसे फूले देखियत प्रात कमल के गोत। 'दास' मित्र उद्दौत लखि सबै प्रफुल्लित होत ॥ ५-परसुराम पितु आज्ञा राखी । मारी मातु लोक सब साखी ॥ तनय ययातिहि यौवन यऊ। पितु प्राज्ञा अघ अजरा न भयऊ ॥ ३५-तदगुण दो०-छोड़ि आपनो गुन जहाँ औरन को गुन लेत । अलंकार तद्गुन तहाँ वरनें कबि करि हेत ॥ विवरण-'गुण' शब्द का अर्थ इस अलङ्कार में केवल 'रंग' है। 'भूषण' ने स्पष्ट कहा है-