पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/११२

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अलंकारचंद्रिका ३-सिव सरजा की जगत में राजति कीरति नौल । अरि तिय अंजन दृग हरै तऊ धौल की धौल ॥ ३७-लोकोक्ति दो०-लोकोकति जहँ लोक की कहनावत ठहराउ । राजा करै सो न्याउ है, पासा परै सो दाउ । यथा- १-फिर रैहै न रहै यहो समयो बहती नदी पाँय पखारि ले री। २-भो बिधना प्रतिकूल जवै तव ऊँट चढ़े पर कूकुर काटत । ३-वृथा मरहु जनि गाल बजाई । मन मोदकनि कि भूख बुझाई । ४-देव कहा हम तुमहि गुसाई। ईधन पात किरात मिताई । ५-कर्म प्रधान विस्व करि राखा। जोजस करै सो तसफल चाखा॥ सूचना-अँगरेजी में इसे इडियम ( Idiom ) कह सकते हैं। फारसी और उर्दू में इस अलंकार को “इरसालुल मसल" कहते हैं । स्मरण रखना चाहिये कि केवल लोकोक्ति मात्र के कथन में अलंकार न होगा। प्रसंग बनाकर अंत में लोकोक्ति पर घटित करने से अलंकारता श्रावेगी। हिन्दी-साहित्य में 'ठाकुर' (बुंदेलखंडी) कवि की कविता में लोकोक्तियों की योजना सराहनीय मानी जाती है। ३८-छेकोक्ति दो० -जहं परार्थ की कल्पना लोकोकति में होय । छेकोकति तासों कहैं कवि कोविद सब कोय ॥ विवरण-जहाँ लोकोक्ति का प्रयोग साभिप्राय हो, अर्थात्