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अलंकारचंद्रिका

'भूषन' सिवाजी गाजी खरग सौ खपाये खल,
खानखाने खलन के खेरे भये खीस हैं।
खड़गी खजाने खरगोस खिलबतखाने,
खीसे खोले खसखाने खाँसत खबीस हैं।

इस कवित्त में भूषन ने मब प्रकार के अनुप्रास एकत्र दिखलाये हैं। तहबाने, गुग्गुलवाने, मितहग्वाने, हरमखाने, मतुरखाने, पीलवाने, करंजवान, विनवतग्वाने और स्वसग्वाने इत्यादि शब्दों में 'खान' शब्द का अर्थ सब जगह एक ही है, परन्तु भिन्न भिन्न शब्दों के साथ समास होने से उन शब्दों के अर्थ भिन्न-भिन्न हो जाने से लाटानुप्रास है। तुरमुती तहखाने, गीदर गुग्नुलखाने, सूकर सित्तहखाने, हिरन हग्मखाने, स्याही हैं सुतुरखाने, पाढ़े पीलावाने, करंज- खाने कीस हैं, खरगोस खिलवतखाने, इत्यादि शब्दों में छेकानुप्रास है। अंतिम दोनों चरणों में 'ख' की आवृत्ति अनेक बार होने से वृत्त्यनुप्रास है। दो०-सुधा तीर्थ को भ्रमज है, रहें हरी चित जानु । मुधा तीर्थ को भ्रमन है, न रहें हरिचित जातु ॥ (ङ)-अंत्यानुप्रास दो०-व्यंजन स्वरयुत एकसे, जो तुकांन में होहि । सो अंत्यानुप्रास है, अरु तुकांत हू अोहि ॥ विवरण-प्रत्येक छंद में चार चरण होते हैं। चारों चरणों के अंत्याक्षर 'तुकांत' कहलाते हैं। इसी तुकांत को अंत्यानुप्रास कहते हैं । भाषा काव्य में तुकांत बहुत अच्छा लगता है । इसी