पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१३

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अनुप्रास

विवरण—(पहले कहे हुए अनुप्रास अक्षरों के अनुप्रास हैं, यह लाटानुप्रास शब्द का अनुप्रास है) शब्द और उसका अर्थ वही रहे, केवल अन्वय करने से अर्थ में भेद हो जाय, उसे लाटानुप्रास कहते हैं। (यह अनुप्रास 'लाट' देशवाले कवियों का निकाला हुआ है, इसी से इसका यह नाम पड़ा।)

उदाहरण—

दो॰—तीरथ व्रत साधन कहा, जो निसिदिन हरि गान।
तीरथ व्रत साधन कहा, बिन निसिदिन हरि गान॥

यहाँ शब्द और अर्थ दोनों की आवृत्ति है, केवल तात्पर्य में भेद है। अर्थात् जो मनुष्य रातदिन हरियश गान करता रहे तो उसके लिये तीर्थ, व्रत और अन्य साधन आवश्यक नहीं हैं। जिस तीर्थ, व्रत और साधन में रातदिन हरियश गान का विधान न हो वह तीर्थ, व्रत और साधन व्यर्थ है।

दो॰—राम हृदय जाके वसें, विपति सुमंगल ताहि।
राम हृदय जाके नहीं, बिपति सुमंगल ताहि॥

जिसके हृदय में राम बसते हैं, उसके लिये विपत्ति भी सुमंगल हो जाती है। और जिसके हृदय में राम नहीं है, उसके लिये सुमंगल भी विपत्ति ही है।

दो॰—औरन के जाँचे कहा, नहिं जाँच्यो सिवराज?।
औरन के जाँचे कहा, जो जाँच्यो सिवराज?॥

कभी-कभी कोई एक शब्द अन्य शब्दों के साथ समास द्वारा मिल जाता है। जैसे—

तुरमुती तहखाने गीदर गुसुलखाने,
सूकर सिलहखाने कृकत करीस हैं।
हिरन हरमखाने स्याही हैं सुतुरखाने,
पाढ़े पीलखाने औ करंजखाने कीस हैं।