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पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/१६

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अलंकारचंद्रिका

चौ॰—गुनहु लन्वन कर हमपर गत । कतहुँ सुधाइहुँ तें बड़ दो!
टेढ़ जानि शंका सब काढू । वक्र चंद्रमौत अम न राहू !
छंद-पदकमन्न धोय चदाइ नाव न नाथ उतर ई चहीं।
मोहि राम गरि पान दसरथ सपथ सब साँची कहीं।
बरु तीर माहि लम्वन पं जव नगि न पाँव पखारिहीं।
तब नगि न 'तुलसीदाम' नाथ कृपाल पार उतारिहौं ।

६-भिन्नात्य,भिन्नतुकांत वा बंतुकी-जिसमें चागे चरणों में भिन्न-भिन्न तुकांत हो । इमं अंगरजी में 'ब्लकवर्म, (Blank Verse) कहते हैं । हिन्दी के प्राचीन कवियों ने सी कविता नहीं लिखी, हाल में कुछ लोग निरखने लगे हैं। जेम-पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय ने अपने प्रियप्रवास' में लिखी है। सूचना-भिन्नतुकांत कविता के लिये कुछ वणिक छंद ही उपयुक्त जान पड़ते हैं-जैसे शार्दूलविक्रीड़ित, वशस्थ, द्रुतविलंबित, इन्द्रवज्रा, भुजंगप्रयात, वसंततिलका इत्यादि । मात्रिक छदों में भिन्नतुकांन' कदापि अच्छा नहीं लगता। २--यमक अलंकार दो०-वहै शब्द फिरि फिरि पर, अर्थ और ई और। सो यमकालंकार है, भेद अनेकन टोर ।। विवरण-वैसा ही वैसा शब्द पुनःपुनः मुन पड़े, परंतु अर्थ जुदा-जुदा हो उसे यमक कहते हैं। इसके सबसे अधिक भद 'केशवदास' ने अपनी 'कविप्रिया' में लिम्व हैं। उदाहरण-

  • इस अलकार को अंगरेजी में 'पन' ( Pun ) कहते हैं । उ और फारसी

में 'तजनीस जायद' कहेंगे।