पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/२७

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उपमा २३ 1 मुख्यता हो उसे 'उपमेय', जिलले समता दै उसे 'उपमान', जिस हेतु समता दें उसे 'धर्म' और जिल शब्द के आश्रय से समता प्रकट करें उसे 'वाचक' कहते हैं। बंदों कोमल कमल से जगजननी के पायें। इसमें कवि का मुख्य तात्पर्य जगजननी (पार्वती) के चरणों के वर्णन से है, इस हेतु 'पाय' शब्द 'उपमेय' है। 'कमल' 'उपमान', 'कोमल' 'धर्म' और 'से' वाचक है। उपमा के दो भेद हैं-(क) पूर्ण और ( ख ) लुप्ता । क-(पूर्णोपमा) ) दो०-वाचक साधारन धरम उपमेय रु उपमान । ये चारों जहँ प्रगट तहँ पूरन उपमा जान ॥ उदा० राम लखन सीता सहित सोहत परन निकेत । जिमि वालव वस असरपुर सची जयंत समेत ॥ यहाँ गाम, लखन और सहीता' उपमेय, 'वासव (इन्द्र), जयंत और शची' उपमान, 'सोहत' धर्म और जिमि' वाचक चारो प्रकट हैं। इसी प्रकार और भी जानो। यथा- सो०-उदय सूर सो भाल, सिंदुर घसो गर्नस को। हरत विधान को जाल, जो जग व्यापक तिमिर सो॥ यहाँ भाल उपमेय, खूर उपमान, उदय साधारण धर्म, सो वाचक और विलजाल उपमेय, तिमिर उपमान, हरत धर्म और सो वाचक प्रकार है। पुनः-आनंद देत चकोर हिनून को है खल कोकन को दुखवारो। कंत है संत कुमोदन को कत्न चाँदनी कित्ति महासितभारो।। गोकुल सील अबुधा सरसे बरसै मुख है अति ही उजियारो। मंद कर अरविंदन को जस कंद सो सेत महीप तिहारो॥