अलंकारचंद्रिका सेवहिं लखन सीय रघुवीरहिं । जिमि अविवेकी पुरुष सरीरहि । रामहि लखन बिलोकन केले। ससिहि चकोर किसोरक जैसे। कवित्त-फूलि उठे कमल ने अमल हितू के नैन, कहै रघुनाथ' भरे चैनरस सियर दौरि आये भौर से करत गुनी गुन गान, सिद्ध से सुजान मुख सागर सो नियरे । सुरभी सी ग्वुलन मुकवि की मुमति लागी, चिरियासी जागी चिता जनक के जियगे। धनुष पै ठाढ़े राम वि से नखत आज, भोर के मे नखत नग्दि परे पियरे । पुनः१-करिकर सरिस सुभग भुजदंडा। २-पीपरपात सरिस मन डोला । ३-बिरही इव प्रभु करत विषादा । (पूर्णापमा का चक्र) नाम उपमेय उपमान धर्म उदाहरण। वाचक पूर्णोपमा राम रवि से लसत = राम रवि से लमत नरिन्द भोरके नम्बत से परेपियरे भोरकेसे नगत नरिन्द्र परेपियरे भुजदंड करिकर सरिस नुभग करिकर मरिस भाग सुजांडा मन पीपरपात सरिस डोला पीपर पान सरिस मन टोला प्रभु विरही करतविपादा विरही श्व प्रभु करत विपादा सूचना-उपमालंकार के प्रयोग से निम्नलिखित पाँच लाभ हैं- ()-अभीष्ट वस्तु का सम्यक् ज्ञान है। (२)-दो वस्तुओं की चामत्कारिक तुलना से चित्त प्रसन्न होता है। (३)-उपमाजनित परिमाणदर्शन से स्थायी शिक्षा मिलती है।
पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/२८
दिखावट