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पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/२९

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उपमा (४) ~भापा में चमत्कार और सौंदर्य पा जाता है। (५)-थोड़े में बहुत का बोध हो जाता है। अतः कविता में इस अलंकार की अनिवार्य आवश्यकता है। ख-(लुप्तोपमा) दो०-वाचक साधारन धरम उपमेयर उपमान । इन मैं इकदै तीन विनु, लुप्ता विविध विधान ॥ विवरण-पूर्णोपमा में चार वस्तुएँ होती हैं। इनमें से जहाँ किसी का लोप हो वहाँ लुप्तोपमा कहते हैं। इस विषय में भिन्न-भिन्न प्राचार्यों के भिन्न-भिन्न मत हैं। हमारे मत से जो हमें ठीक जंचते हैं उन्हीं को हम यहाँ लिखते हैं। १--(वाचकलुप्ता) जहाँ वाचक शब्द का लोप हो। जैसे- १-जारि दियो उपमुंद म्मुत, दुसह रूप दुखधाम । सूर सिरोमनि रावगे, राम काम अभिराम । २-सरद मयंक बदन छवि सीवाँ । ३-नव अंबुज अंबक छवि नीकी । ४-सरद बिमल वियु बदन सोहावन । ५-नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन। यहाँ सो, से, सम इत्यादि वाचक शब्दों का लोप किया गया है। २--(धर्मलुप्ता) जहाँ साधारण धर्म का लोप हो। जैसे- १-करि प्रनाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी ! २-तुम सम पुरुष न मो सम नारी । .