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अलंकारचंद्रिका

(क) अमुक व्यक्ति दूसरा बृहस्पति है, (ख) अमुक व्यक्ति की विद्वत्ता से लज्जित होकर बृहस्पति पीले हो गये हैं, (ग) अमुक व्यक्ति वृहस्पति के सामान है, (घ) अमुक व्यक्ति की विद्वत्ता से हारकर वृहस्पति दिन में अपना मुँह नहीं दिखलाते, (ङ) अमुक व्यक्ति मनुष्य नहीं—वृहस्पति हैं इत्यादि, तो इस प्रकार के कथनों में कुछ विशेष चमत्कार आ जाता है। इसी चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं। यह अलंकार अर्थ पर निर्भर रहता है, इसलिये इसके शब्द पर्यायवाची शब्दों से बदल दिये जा सकते हैं।

(३) ऊपर कहे हुए अलंकारो में से किसी प्रकार के एक से अधिक अलंकारों के सम्मेलन को उभयालंकार कहते हैं, परन्तु उसमें नियम यह है कि जिस अलंकार की मुख्यता समझी जायगी वही अलंकार मान लिया जायगा। इस छोटी-सी पुस्तक में हम इसका वर्णन न करेंगे।

पहला प्रकाश

शब्दालंकार

शब्दालंकार अनेक हैं, पर नीचे लिगे हुए ४ शब्दालंकार मुख्य हैं—(१) अनुप्रास, (२) यमक, (३) वक्रोकि और (४) शलेष।

१—अनुप्रास[१]

दो॰—व्यंजन सम बरु स्वर असम, अनुप्रासऽलंकार।
छेक, वृत्ति, श्रुति, लाट अरु, अंत्य पाँच विस्तार॥


  1. (नोट)—फारसी, अरबी तथा उर्दू में अनुप्रास, और यमक अलंकारों को "तजनीस" कहते हैं। हिन्दी की तरह उन भाषाओं में भी इन अलंकारो के अनेक भेद हैं।