५६ अलंकारचंद्रिका पठै मोह मिस खगपति तोही । रघुपति दीन्ह बड़ाई मोहीं॥ लखी नरेस बात यह साँची। तिय मिस मीचु सीस पर नाची ॥ लालिमा श्री तरवानि के तेज में सारदा लौ सुखमा की निसेनी। नूपुर नीलमनीन जड़े जमुना जगैं जौहर में मुख देनी ॥ यौं 'लछिराम' छटा नख नौल तरंगिनी गंगप्रभा फल पैनी। मैथिली के चरनांबुज व्याज लसै मिथिलामगु मंजु त्रिवनी। सूचना-इस अलंकार में मिस, छल, व्याज, बहाना इत्यादि शब्दों का लाना आवश्यक है। जिस वस्तु के बहाने से कथन की जाती है इन दोनों में कारण और कार्य का-सा अथवा उपमेय और उपमान का- सा सम्बंध भी होना जरूरी है। 'पर्यायोक्ति' से इसका अंतर समझ लेना चाहिये । पर्यायोक्ति अलंकार की सूचना में देखिये । १२-उत्प्रेक्षा सूचना-उत्प्रेक्षा ( उत्+प्र+इक्षण ) शब्द का अर्थ है "बल पूर्वक प्रधानता से देखना"। इस अलंकार का मुख्य तात्पर्य किसी उप- मेय का कोई उपमान कल्पनाशक्ति द्वारा कल्पित कर लेना है। कल्पना प्रतिभा के बल से ही हो सकती है। जितनी ही शक्तिवती प्रतिभा होगी उतनी ही उत्तम कल्पना हो सकेगी, इसीलिये इस अलंकार को उत्प्रेक्षा कहते हैं। अतः उत्प्रेक्षा की परिभाषा हुई- दो o-बल सों जहाँ प्रधानता करि देखिय उपमान । उत्प्रेक्षा भूषण तहाँ कहत सुकवि मतिमान ॥ वाचक-मनु, जनु, मानो, जानो, निश्चय, प्रायः, बहुधा, इव, खलु, इत्यादि शब्द इस अलंकार के वाचक होते हैं। उत्प्रेक्षालंकार तीन प्रकार का होता है -(१) वस्तूत्प्रक्षा, (२) हेतूत्प्रेक्षा और (३) फलोत्प्रेक्षा।
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