पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/६४

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६० अलंकारचंद्रिका विषय' है-कवि ने कही ही नहीं । इससे अनुक्तविषया जानो। इसी प्रकार और भी समझ लो। बरसै जनु काजल गगन तम लिपटत सब गात । दीठि नीच सेवा सरिस विफल भई सी जात ॥ सूचना-उपमा में दो वस्तुओं की समता वस्तुतः दिखलाई जाती है। उत्प्रेक्षा में केवल उस समता का संभव संशय रूप से कहा जाता 1 २-हेतृत्प्रेक्षा अहेतु को हेतु मानकर उत्प्रेक्षा की जाय, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा समझो । इसके भी दो भेद हैं- (१) सिद्धास्पद उत्प्रेक्षा का आधार सिद्ध हो (संभव हो)। (२) असिद्धास्पद अर्थात् उत्प्रेक्षा का आधार सिद्ध न हो (असंभव हो) (१) सिद्धास्पद हेतृत्प्रेक्षा १-मनो कठिन आँगन चली ताते गते पाय । सुकुमार स्त्रियों के चरणों में ललाई स्वाभाविक ही होती है, परन्तु कवि उसका हेतु कल्पित करता है कि मानो कठिन आँगन में चलने से वह ललाई आ गई है। स्त्रियाँ आँगन में चलती ही हैं । यह तो सिद्ध आधार अहेतु में हेतु की कल्पना की गई है। यही अलङ्कारता है। २- रवि अभाव लखि रैनि में दिन लखि चंद् बिहीन । सतत उदित यहि हेतु जनु जस प्रताप भुवि कीन ॥ यहाँ भी रात में सूर्य का अभाव और दिन में चन्द्रमा का अभाव सिद्ध आधार है, पर इन्हीं कारणों से कोई राजा पृथ्वी