पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/७१

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अतिशयोक्ति ६७ विवरण-संबंधातिशयोक्ति के दो भेद हैं-(१) योग्य में अयोग्यता प्रकट करके प्रस्तुत की अतिशय बड़ाई करना और (२) अयोग्य में किसी के संबंध से ऐसी योग्यता दिखलाना कि अतिशय वड़ाई प्रकट हो। (१) योग्य में अयोग्यता सान भरे भुज दंड अखंड तिहूँ पुरमंडन मान भरै को? आँगुरि वे अकलेस धनी सनी मौजन में अनुमान अरै को ? यौं नखभा 'लछिराम' लखे नखतावली के परमान धरै को ? श्रीरघुनाथ के हाथन सामुहे कल्पलता सनमान करै को ? कल्पलता सम्मान करने योग्य वस्तु पर उसे अयोग्य ठहराकर उसके संबंध से रामजी के हाथों की अतिशय उदा- रता प्रकट की गई है । पुनः- मति सुन्दर लखि मुख सिय तेरो। आदर हम न करत ससि केरो। यहाँ शशि सम्मान योग्य होने पर भी मुख की अतिशय सुन्द- रता का वर्णन करने के हेतु अनादर का पात्र ठहराया गया है। कानन कुंज प्रमोद बितान भरे फल फूल सुगंध बिधान ॥ बावली के अरिबिंदन पै मकरंद मलिंद सने सुभ गाने ॥ त्यो 'लछिराम' तरंगन ते सरजू के कड़े सुर साजि बिमान । औधपुरी महिमा यो चितै अमरावति को हम क्यों सनमान ? (२) अयोग्य में योग्यता फबि फहरें अति उच्च निसाना। जिन महँ अटकत बिबुध बिमाना। विवुधविमान अवश्य ही बहुत ऊँचे पर होंगे। उनसे संबंध प्रकट करने से 'धजा' में यह योग्यता हो गई कि उसकी ऊँचाई की अतिशयोक्ति हो गई। विवधविमान के संबंध से अत्यंत ऊँचाई लक्षित हुई । पुनः-