पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/९१

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विभावना (नितांत झूठा) है । विषमालंकार के दूसरे भेद में जो विरोध कहा जाता है वह सत्य होता है और केवल कार्यकारण के संबंध ही में कहा जाता है। २४-विभावना किसी घटना के कारण के संबंध में कोई विलक्षण कल्पना की जाय उसे 'विभावना' कहते हैं । इसके छः भेद हैं- पहली दो०-कारन बिनही होत है कारज कौनौ सिद्ध । १-बिनु पद चलै सुनै बिनु काना । कर बिनु कर्म करै बिधि नाना॥ श्राननरहित सकल रस भोगी। बिन बानी बकता बड़ जोगी। २-केशव कहि न जाय का कहिये । देखत तव रचना विचित्र अति समुझि मनहिं मन रहिये । सून्य भीति पर चित्र रंग नहिं तनु बिनु लिखा चितेरे । ... ... BO ... ... 00 200 ३-दो०-सुनत लखन श्रुति नैन बिनु, ग्सना बिनु रस लेत । बास नासिका बिनु लहै, परसै बिना निकेत ॥ दूसरी दो०-हेतु अपूरण तें जहाँ कारज पूरन होय । यथा- १-काम कुसुम धनु सायकलीन्हें। सकल भुवन अपने बस कीन्हें। २-तोसो को सिवाजी जेहि दो सौ आदमी सों जीत्यो जंग सर- दार सौ हजार असवार को। ३-राजकुमार सरोज से हाथन सो गहि संभु सरासन तोरयो। ४-संकर पायन में लगुरे मन थोरही बातन सिद्धि महाई ।