पृष्ठ:अलंकारचंद्रिका.djvu/९३

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विषम 98 पाँचवीं दो o-बरनन हेतु विरुद्ध ते उपजत हैं जहँ काज । १-सिय हिय सीतल भो लगे जरत लंक की झार ॥ २-अानन ऐन सुधा को हहा तेहि ते इतनो विषबैन बकै तू। ३-तुव मुख रबि बालातप जु मरुनायक जसवंत । अन्य नृपन के कर कमलयुत संकोच करत ॥ ४-बन बिहार थाकी तरुनि खरे थकाये नैन । छठी दो 10-जहँ कारज सों होत है कारन की उतपत्ति । यथा- १-दो-तुव कृपानु धुव धूम ते भयो प्रताप कृसानु । २-और नदी नदन ते कोकनद होत तेरो कर कोकनद नदी नद प्रगटत है। ३-दो०-कर कलपद्रुम सो करयो जस समुद्र उतपन्न । ४-हाय उपाय न जाय कियो व्रज वू ड़त है बिनु पावस पानी । धारन से अँसुवान की है चखमीनन ते सरिता सरसानी ॥ २५--विषम (अनमिल वस्तुओं वा घटनाओं के वर्णन में विषम अलंकार होता है ।) पहला अनमिल अनमिल वस्तु को बरनत है जेहि ठौर । प्रथम विषम तेहि कहत हैं सकल सुकवि सिरमौर ॥ यथा-