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अहङ्कार


पड़ी, यद्यपि उन्होंने थायस से इस विषय में कुछ नहीं कहा।

फ़िलिना ने थायस से कहा-तुम्हारी रूपशोभा कितनी अद्भुत है! जब तुम पहले पहल इस्कन्द्रिया आई थीं, उस समय भी तुम इससे अधिक सुन्दर न रही होंगी। मेरी माता को तुम्हारी उस समय की सूरत याद है। वह कहती हैं कि उस समय समस्त नगर में तुम्हारे जोड़ की एक भी रमणी न थी। तुम्हारा सौन्दर्य्य अतुलनीय था।

ड्रोसिया ने मुसकिराकर पूछा-तुम्हारे साथ यह कौन नया प्रेमी आया है? बड़ा विचित्र, भयंकर रूप है। अगर हाथियों के चरवाहे होते हैं वो इस पुरुष की सूरत अवश्य उनसे मिलती होगी। सच बताना बहिन, यह वनमानुस तुम्हें कहाँ मिल गया? क्या यह उन जन्तुओं में तो नहीं है जो रसातल में रहते हैं और वहाँ के धूम्र प्रकाश से काले हो जाते हैं।

लेकिन फिलिना ने ड्रोसिया के ओठों पर उँगली रख दी और बोली-चुप! प्रणय के रहस्य अभेद्य होते हैं और उनकी खोज करना वर्जित है। लेकिन मुझसे कोई पूछे तो मैं इस अद्भुत मनुष्य के ओठों की अपेक्षा, पटना के जलते हुए, अग्निप्रसारक, मुख से चुम्बित होना अधिक पसन्द करूँगी। लेकिन बहिन, इस विषय में तुम्हारा कोई वश नहीं। तुम देवियों की भाँति रूप गुणशीला और कोमलहृदया हो, और देवियों ही की भाँति तुम्हें छोटे-बड़े, भले-बुरे, सभी का मन रखना पड़ता है, सभी के आँसू पोंछने पड़ते हैं। हमारी तरह केवल सुन्दर सुकुमारी ही की याचना स्वीकार करने से तुम्हारा यह लोकसम्मान कैसे होगा?

थायस ने कहा-

तुम दोनों ज़रा मुँह सँभाल कर बातें करो। यह सिद्ध और चमत्कारी पुरुष हैं। कानों में कही हुई बातें ही नहीं, मनोगत