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अहङ्कार


लिए उत्सुक हैं जिसके आप अनुयायी हैं। आप जानते हैं कि हमारे मित्र ज़ेनाथेमीज़ को नित्य रूपकों और दृष्टान्तों की धुन सवार रहती है, और उन्होंने अभी पापनाशी महोदय से यहूदी ग्रंथों के विषय में कुछ जिज्ञासा की थी। लेकिन उक्त महोदय ने कोई उत्तर नहीं दिया और हमें इसका कोई आश्चर्य न होना चाहिए क्योंकि उन्होंने मौन व्रत धारण किया है। लेकिन आपने ईसाई धर्म सभाओं में व्याख्यान दिये हैं। बादशाह कान्सटैनटाइन की सभा को भी आपने अपनी अमृतवाणी से कृतार्थ किया है। आप चाहें तो ईसाई धर्म का तात्विक विवेचन और उन गुप्त आशयों का स्पष्टीकरण करके जो ईसाई दन्तकथाओं में निहित हैं, हमें संतुष्ट कर सकते हैं। क्या ईसाइयों का मुख्य सिद्धान्त तौहीद (अद्वैतवाद) नहीं है, जिस पर मेरा विश्वास होगा?

मार्कस-हाँ सुविज्ञ मित्रो, मैं अद्वैतवादी हूँ! मैं उस ईश्वर को मानता हूँ जो न जन्म लेता है, न मरता है, जो अनन्त है, अनादि है, सृष्टि का कर्ता है!

निसियास-महाशय मार्कस, आप एक ईश्वर को मानते हैं, यह सुनकर हर्ष हुआ। उसी ने सृष्टि की रचना की, यह विकट समस्या है। यह उसके जीवन में बड़ा क्रान्तिकारी समय होगा। सृष्टि रचना के पहले भी वह अनन्तकाल से विद्यमान थी। बहुत सोच विचार के बाद उसने सृष्टि को रचने का निश्चय किया। अवश्य ही उस समय उसकी अवस्था अत्यन्त शोचनीय रही होगी। अगर सृष्टि की उत्पत्ति करता है तो उसकी अंखण्डता, सम्पूर्णता में बाधा पड़ती है। अकर्मण्य बना बैठा रहता है तो उसे अपने अस्तित्व ही पर भ्रम होने लगता है; किसी को उसकी खबर ही नहीं होती, कोई उसकी चर्चा ही नहीं करता। आप