पृष्ठ:अहंकार.pdf/१८०

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पापनाशी ने एक नौका पर बैठकर, जो सिरापियन के धर्मा- श्रम के लिए खाद्य पदार्थ लिए जा रही थी, अपनी यात्रा समाप्त की और निज स्थान को लौट आया। जब वह किश्ती पर से उतरा तो उसके शिष्य उसका स्वागत करने के लिए जल-तट पर आ पहुँचे और खुशियाँ मनाने लगे। किसी ने आकाश की ओर हाथ उठाये, किसी ने धरती पर सिर झुकाकर गुरु के चरणों को स्पर्श किया। उन्हें पहले ही से अपने गुरु के कृत-कार्य होने का आत्म-ज्ञान हो गया था। योगियों को किसी गुप्त और अज्ञात रीति से अपने धर्म के विजय और गौरव के समाचार मिल जाते थे, और इतनी जल्द कि लोगों को आश्चर्य होता था। यह समा- चार भी समस्त धर्माश्रमों में जो उस प्रान्त में स्थित थे आंधी के वेग के साथ फैल गया।

जब पापनाशी बलुवे मार्ग पर चला तो उसके शिष्य उसके