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अहङ्कार

कालक्षेप कर सकता है। अतएव उसने इसे अपने जीवन का नियम बना लिया। प्रातःकाल से सध्या वक वह एक क्षण के लिए भी सिर ऊपर न उठता था।

एक दिन जब वह इस भाँति औधे मुँह पड़ा हुआ था तो उसके कानों में किसी के बोलने की आवाज आई—

'पाषाण-चित्रों को देख, तुझे ज्ञान प्राप्त होगा!'

यह सुनते ही उसने सिर उठाया, और तहखाने की दीवारों पर दृष्टिपात किया तो उसे चारों ओर सामाजिक दृश्य अंकित दिखाई दिये। जीवन की साधारण घटनाएँ जीती-जागती मूतियों द्वारा प्रगट की गई थीं। यह बड़े प्राचीन समय की चित्रकारी थी और इतनी उत्तम कि जान पड़ता कि मूर्तियाँ अब बोला ही चाहती हैं। चित्रकार ने उनमें जान डाल दी थी। कहीं कोई नानबाई रोटियाँ बना रहा था और गालों को कुप्पी की तरह फुलाकर आग फूँकता था, कोई बतखों के पर नोच रहा था और कोई पतीलियों में मांस पका रहा था। ज़रा और हटकर एक शिकारी कंधों पर हिरन लिये जाना था जिसकी देह में वाण चुभे दिखाई देते थे। एक स्थान पर किसान खेती का काम- काम करते थे। कोई बोता था, कोई काटता था, कोई अनाज बखारों मे भर रहा था। दूसरे स्थान पर कई स्त्रियाँ वीणा बाँसुरी और तम्बूरों पर नाच रही थीं। एक सुन्दरी युवती सितार बजा रही थी। उसके केशों में कमल का पुष्प शोभा दे रहा था। केश बड़ी सुन्दरता से गूंथे हुए थे। उसके स्वच्छ महीन कपड़ों से उसके निर्मन अंगों की आभा झलकती थी। उसके मुख और वक्षस्थन की शोभा अद्वितीय थी । उसका मुख एक ओर को फिरा हुआ था; पर कमलनेत्र सीधे ही ताक रहे थे। सर्वाग अनुपम, अद्वितीय, मुग्धकर था। पापनाशी ने उसे देखते