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अहङ्कार


गोड़ने लगे। वह फल से लदे हुए एक इन्जीर के वृक्ष की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा रहे थे। वह कुदाल चनाही रहे थे कि झाड़ियों में सनसनाहट हुई और एक हिरन बान के बाड़े के ऊपर से कूद कर अन्दर भा गयांग वह सहमा हुआ था, उसकी कोमल टाँगें कांप: रही थी। वह संत पालम के पास आया और अपना मस्तक उनकी छाती पर रख दिया।

पालम ने कहा-ईश्वर को धन्य है जिसने इस सुन्दर वनर जन्तु की सृष्टि की।

इसके पश्चात् पालम संत्र अपने झोपड़े में चले गये। हिरन भी उनके पीछे-पीछे चला। संत ने तब ज्वार की रोटी निकाली और हिरन को अपने हाथों से खिलायी।

पापनाशी कुछ देर तक विचार में मन खड़ा रहा। उसकी आखें अपने पैरों के पास पड़े हुये पत्थरों पर जमी हुई थीं। तब वह पालम सन्च की बातों पर विचार करता हुआ धीरे-धीरे अपनी कुटी की ओर चला। उसके मन में इस समय भीषण संग्राम हो रहा था।

उसने सोचा-संत पालम की सजाह अच्छी मालूम होती है। वह दूरदर्शी पुरुष हैं। उन्हें मेरे प्रस्ताव के औचित्य पर संदेह है, तथापि थायस को पातक पिशाचों के हाथों में छोड़ देना घोर निर्दयता होगी। ईश्वर मुझे प्रकाश और बुद्धि दे।

चलते-चलते उसने एक तीवर को जाल में फँसे हुए देखा जो किसी शिकारी ने विकारखा था। यह तीतरी मालूम होती थी क्योंकि उसने एक क्षण में नर को जाल के पास उड़कर और जाल के फंदे को चोंच से काटते देखा, यहाँ तक कि जाल में तीतरी के निकलने भर का छिद्र हो गया। योगी ने घटना को विचार पूर्ण नेत्रों से देखा और अपनी शान-शक्ति से सहज मैं इसका