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अहङ्कार

विषर्ण और आँखें लाल थीं। उसने थायस के द्वार पर फूलों की माला चढ़ाई। लेकिन थायस भयभीत और अशान्त थी, और लोलस से मुँह छिपाती रहती थी। फिर भी लोलस की स्मृति एक क्षण के लिए भी उसकी आँखों से न उतरती। से वेदना होती थी पर वह इसका कारण न जानती थी। उसे आश्चर्य होता था कि मैं इतनी खिन्न और अन्यमनस्क क्यों हो गई हूँ। वह अन्य सब प्रेमियों से दूर भागती थी। उनसे उसे घृणा होती थी। उसे दिन का प्रकाश अच्छा न लगता, सारे दिन अकेले बिछावन पर पड़ी, तकिये मे मुँह छिपाये, रोया करती। लोलस कई बार किसी-न-किसी युति से उसके पास पहुॅचा, पर उसका प्रेमाग्रह, रोना धोना, एक भी उसे न पिघला सका। उसके सामने वह ताक न सकती, केवल यही कहती—नहीं, नहीं!

लेकिन एक पक्ष के बाद उसकी जिद जाती रही। उसे ज्ञात हुआ कि मैं लोलस के प्रेमपाश में फँस गई हूँ। वह उसके घर गई और इसके साथ रहने लगी। अब उनके आनन्द की सीमा न थी। दिन भर एक दूसरे से आँखें मिलाये बैठे प्रेमालाप किया करते । सन्ध्या को नदी के नीरव निर्जन तट पर हाथ में हाथ डाले टहलते। कभी-कभी अल्णोदय के समय उठकर पहाड़ियों पर सम्बुल के फूल बटोरने चले जाते। उनकी थाली एक थी, प्याला एक था, मेज़ एक थी। लोलस उसके मुँह के अँगूर अपने मुँह से निकालकर खा जाता।

तब मीरा लोलस के पास आकर रोने पीटने लगी कि मेरी थायस को छोड़ दो। यह मेरी बेटी है, मेरी आँखों की पुतली! मैंने इसी सदर से उसे निकाला, इसी गोदमे उसका लालन-पालन किया और अब तू उसे मेरी गोद से छीने लेना चाहता है।

लोलस ने उसे प्रचुर धन देकर विदा किया, लेकिन जब वह