पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१०२

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अहिंसा एक आडम्बर है। आज युद्ध क्यों हो रहा है? क्योंकि जर्मनी भी लूटमे हिस्सा लेना चाहता है ? जिस तरहसे बिटेन हिन्दुस्तानको हड़पकर गया, वह क्या प्रजातंत्रका ढंग था ? वक्षिण अफ्रीकाम प्रजातंत्र क्या अर्थ रखता है ? वहांका तंत्र गड़ हो गया है देशके असल मालिक काले हाशियों के विरुव गोरोंकी रक्षा करने के लिए । उत्तर अमेरिकाने गुलामीको प्रथाको नष्ट करनेके लिए जो काम किया उसके बावजूद, मापलोगोंका इतिहास तो इससे भी काला है । आपलोगोंने अमेरिकाके हशियोंके साथ जो सलूक किया है वह एक शर्म- भाक किस्सा है। यह है आपका प्रजातंत्र, जिसे बचाने के लिए यह युद्ध लड़ा जा रहा है। इसमें भारी भकी बू आती है । इस समय मै अहिंसाको परिभाषामे बात कर रहा हूँ, और हिंसा- का नंगा स्वरूप दिखा रहा हूँ। हिन्दुस्तान सच्या प्रजासत्र बननेका प्रयत्न कर रहा है, ऐसा प्रमा- संघ जिसमें हिंसाके लिए कोई स्थान न होगा। हमारा हथियार सत्याग्रह है। उसका व्यक्त स्वरूप है चर्खा, प्राम-उद्योग संघ, उद्योगके जरिये प्राथमिक शिक्षा-प्रणाली, अस्पृश्यता निवा- रण, मद्य-निषेध और अहिंसक तरीकेसे मजदूरोंका संगठन, जैसा कि अहमधाबादमें हो रहा है,

  • और साम्प्रदायिक-ऐक्य । इस कार्यक्रमके लिए जनताको सामुदायिक रूममें प्रयरन करना

पड़ता है, और सामवायिक रूपसे जनताको शिक्षण भी मिल जाता है। इन प्रवृत्तियोंको चलानेके लिए हमारे पास बड़े बड़े संघ हैं, पर कार्यकर्ता पूरी तरह स्वेच्छासे इस काममें आये है। उनके पीछे अगर कोई शक्ति है, तो वह उनको अत्यन्त बौन-दुबलोझी सेवा-भावना है। यह तो हुआ अहिंसक युद्धका स्थायी भाग। इसमें से अहिंसक तरीकैसे सत्ताका सामना करनेकी शक्ति पैदा होती है । यह सामना सविनय भंग और असहयोग कहलाता है । असहयोगका अंतिम रूप कर वेनेसे इन्कार करना है। आप जानते है कि हमने काफी बड़े पैमानेपर सविनयभंग और असहयोगका प्रयोग किया है। उसमें सफलता भी हमें काफी मिली है। यह प्रयोग एक कंचे भविष्यको आशा दिलाता है। आजतक हमारी लड़ाई कमजोरको लड़ाई रही है। पर हमारा उद्देश्य बलबानकी अहिंसक लड़ाईकी शक्ति प्राप्त करनेका है। आपके ये युख प्रजातंत्रको कभी सुरक्षित नहीं बना सकेंगे। पर यदि भारतीय इतना आगे बढ़ सके, या कहो कि ईश्वरने मुझे इस प्रयोगको सफल बनाने के लिए आवश्यक शक्ति और बुद्धि पी, तो भारतका प्रयोग प्रजातंत्रको सुरक्षित बना सकेगा। हरिजन सेवक १८ मई, १९४० . घ