पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१०१

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गांधीजी उत्तर--अगर श्रेष्ठ पवितके अंग्रेज और श्रेष्ठपंक्तिके भारतवासी जबतक किसी समझौतेपर न पहुंचे, तबतकके लिए अलहदा न होने के पक्के इरादेसे मिलकर बैठ जाय, सो मेरी कल्पनाके अनुसार लोकप्रतिनिधि सभा बुलानेका कोई रास्ता जरूर निकल आयगा । अलबत्ता, ध्येयके सम्बन्ध तो इस मिश्र जमातको एक रायका होना ही चाहिए। अगर इसी बातपर अनिश्चय हो तब तो उससे सिवा वितंडावावके और कुछ हासिल होनेका नहीं। इसलिए ऐसा मंडल यदि विचार करनेके लिए बैठे, तो मात्म-निर्णयका सिद्धान्त उसमे आरंभसे हो सबको मान्य होना चाहिए। प्रश्न--मान लीजिये कि भारत आपके जीवनकालमें स्वतंत्र हो जाय' फिर अपना शेष जीवन आप किस काममें बितायेंगे ? उत्तर--यवि भारत मेरे जीवन काल में स्वतंत्र हो जाय और मुझमें शक्ति शेष रहे तो मैं तो शासन-जगतसे बाहर रहकर बुस्त अहिंसाके आधारपर राष्ट्र-निर्माण काममें अपना उचित हिस्सा लू। हरिजन सेवक ४ मई, १९४० प्रजातंत्र और अहिंसा प्रश्न--एक अमेरिकन मित्रने पूछा है, आप ऐसा क्यों कहते हैं कि प्रजातंत्रको यदि कोई चीन बचा सकती है, तो केवल अहिंसा ही बचा सकती है ?' उत्तर-धयोंकि जबतक प्रजातंत्रका आधार हिंसापर है। वह बीन-दुर्बलौकी का नहीं कर सकता । थुर्बलों के लिए ऐसे रानतंत्रमें कोई स्थान नहीं है। प्रजातंत्रका अर्थ में भी समझा हूँ कि इस क्षेत्रमें नीचे-से-नीचे और ऊँचे-से-केचे भावभीको आगे बढ़ने का समान अवसर मिलना चाहिए, लेकिन सिवा अहिंसाफे ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। संसारमें कोई या ऐसा नहीं, जहाँ कमजोरीके हककी रक्षा बतौर फर्जफे होती हो। अगर गरीबों के लिए कुछ किया भी जाता है तो वह मेहारबानीके तौरपर किया जाता है। आपलोगों में तो कहायत ही है कि 'कमजोरकोसो मरना ही है। अमेरिकाको ही देखो। आपकी सारी जमीन चंद जमीवारोंक करने में है। इन बड़ी बड़ी नायवायों की रक्षा मुप्त या प्रकार हिंसाके पिता हो नहीं सकती। पश्चिमका आजका प्रजासत्र जरा हलो रंगका नाजी और फासिज्म-संत्रही है। ज्याबा-से-ज्यादा प्रजातंत्र, साम्राज्यवावको नाणी और फैसिस्ट बालको कनेके लिए ३२२