पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१२४

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अहिंसा करनी चाहिए। इस लेखको ध्वनि ही शुरूसे आधिरतक मिठास बनाये रखनी है। दूसरा मारो हो ही नहीं सकता था। पर बह पोषमय तर्जुमा यस्मात भाता है कि मैंने जो गुजराती लिखनेका निवनय किया है वह हर तरहसे ठीक ही है। चाहे कितना ही शक्तिशाली मनुष्य तर्जुमा करे फिर भी उसमें दोषोंका रह जान। राम्भव है। याइबलका तर्जुमा चालीस बयालीस विद्वानों बैटकार किया था, तब भी उसमें भूले चाहे थोड़ी ही सही मगर, रह तो गयी ही हैं। प्रेम-गांठ तो जैसी है, वैसी ही कायम रहेगी। समय बल्कि उसे ज्यादा मजबूत कर देगा। पर इश पया? इतना तो स्पष्ट है ही कि कितना भी समहामार, बहुत गाल्पकी शान हमारा मार्ग अलग पड़ गया है। ज्यों-ज्यों में विचार करता हूँ, त्यों-त्यों देखा कि काँग्रेस अपने मार्गसे नीचे उतर गयी है। उसके पास जो भूलधन था, वह उस खो दिया है। यह क्षहा जा सकता है कि यह भूलधन काँग्रेसके पास था ही नहीं, इसलिए उसे सोना पया था? कांग्रेसकी अहिंसा तो स्थापित सरकारके साथ लड़ने तक ही परिनिर थी। बाफी क्षेत्रोंके विषय तो काँग्रेसने कभी निर्णय किया ही नहीं था, करनेका अपार ही नहीं था। व्यक्तिगत बचाव करनेकी छूट तो कांग्रेसने गया ही देवी थी। इन दलीलोको लिए स्थान लो है, मगर मैं देखता हूं कि काफी संख्या काँग्रेस- धावी यह मानते हैं कि अहिंसाके गर्भ में ऊपरके क्षेत्र माही जाते हैं। उसके बिना अहिंसा बिना सिरफे घड़की तरह निर्जीव मानी जायगी। मगर जहाँ हृदयकी वीणा बज रही हो, वहाँ चाहे किसी भी प्रक्षफी दलीलोंका शव-माल हो, उससे क्या फायदा? ऐसी विषम स्थितिम सरवार आदिने ओ मार्ग ग्रहण किया है, वह उनके लिए शोभाप्रय है, क्योंकि उनका हृदय उन्हें प्रेरणा कर रहा है । सरयार भाषणकर्ता नहीं, कार्यकता है। उनमें जो कुशलता है उसके अनुसार बिना आगा-पीछा खे अपने काममें भरत रहते हैं, और सदा रहे । मेरा मार्ग मेरे सामने स्पष्ट है। मगर जो लोग आजतक हम दोनोंको एक समाकर काम करते आये हैं, वे क्या करें? उनकी स्थिति कठिन जहर है। उनकी अहिंसा उनकी आत्मा ओत-प्रोत न हुई हो, सिर्फ मेरी अहिंसाके आधारपर निभती हो, तो उनका धर्म है कि सरदारके पीछे चलें । सरवार मार्ग भूले हैं, ऐसा मैं मानता हूँ। या यो कहिये कि मेरे मागंपर चलना उनकी शक्तिसे बाहर है। मेरी सम्मतिसे, मेरे प्रोत्साहनसे उन्होंने यह अलग रास्ता अख्तियार किया है । इसलिए जिनके मनमें शंकाको स्थान है, उन्हें सरचारके पीछे हो बलमा चाहिए । मैं मानता हूँ कि सरदार अपनी भूल देखो, या जो शाक्ति उनमें नहीं है, ऐसा वह मान बैठे है, वह शक्ति जम उनमें मा मायगी, तब वह फिर मेरा रास्ता पक्षण करेंगे। जब वह सुअवसर आयेगा, तब दूसरे सरारके साथ मेरे मागंपर आयेंगे। ऐसा करनेमें उनको सुरक्षितता है। मगर जिनके मनमें सपने मार्गक विषयमें शंका ही माही, जिन्होंने अहिंसाको अपना