पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१२५

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गांधीजी लिया है और सब संकटोंमें सिर्फ अहिंसा-रूपी शस्त्रके द्वारा ही जिन्हें रक्षा करनी है, उनको चुपचाप काँग्रेससे निकल जाना चाहिए। अगर वे सच्चे अहिंसक होंगे, तो काँग्रेसमें हो पक्ष नही होने दंगे। काँग्रेसमेंसे निकल गये, तो दो पक्ष पड़नेकी बात हो कहाँ रही ? काँग्रेससे निकलकर भी वह प्रतिपक्षी नहीं बनेंगे। काँग्रेसके अनेक अहिंसक कार्योंमें जहाँ सरदार भवय मांगेगे, यहाँ भवद बेंगे और जहाँ हुल्लड़ वगैरा होता होगा, वहाँ बाह यथावाहित मर मिटनका प्रयत्न करेंगे । मेरी कल्पनाका एक छोटा-सा भी सत्याग्रही- मंडल बने तो वह इष्ट है और बनना चाहिए और मैं मानता हूँ कि वह लोग हिंसाका झंडा अखंड फहराला हुआ रख सकेंगे। इतना ही नहीं, बल्कि काँग्रेसवादियों के हृदयपर भी उसका असर डाल सकेंगे। बहुतसे काँग्रेसियोंको इच्छा तो है ही कि सब क्षेत्रोंमें अहिंसापर अमल हो, पर वह सम्भव है या नहीं इस बारे में उन्हें शंका है। इस क्षाका निवारण करना मेरा और मेरे सहमियोंका कर्तव्य है। हरिजन-सेवक, ३ अगस्ता. १९४०