पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१९

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गांवीजी भें यह दावा नही करता कि राजकौटकी प्रजामें अहिसाका वह अदभुत गुण जा गया है, जो फिसी भी झगड़ेका मुकाबला कर सकता है । लेकिन राजकोटने यह बतला दिया है कि सारी प्रजा द्वारा संगठित रूपसे ग्रहण की हुईसासूली अहिसा भी फितना कास कर सकती है ।

राजकोटकी प्रजाका कास निदचय ही भहान है, ऊेकिन सत्याग्रहीके रूपमें' उसकी सथ्ची परीक्षा तो अभी होनी ही है । उसने जिन गुणोंसेविजय प्राप्त की है,उसे फायत रखनेवे। लिये भी उन्हीं गुणोंपरवह कायम ने रही, तो सारा किया-कराया चौपट हो जायभा। सारे हिल्दुस्तानमें' एक लम्बं अभ्यासके बाद कॉग्रेसबालोंने सविनय अवज्ञा करनेफी अपनी क्षमता तो बिखला दी हूँ, छेकित रजनात्मक भहिसाकी अपनी योग्यता अभी उन्हें बतलानी

है । हो सकता है. कि सविनय अब तो हिसासे निश्चितत होनेपर भी काश लायक शसमश ली जाय । लेकिन रचनात्मक फार्थक्रममें हिसाका छिपना मुहिकज है, उससे हिुसाका आरागीसे

पता चल जाताहै । और हिंसाका जरा भी समावेद् विजपको भो एक जालओें" परिणत कर देता हैऔर बह विजय एक भ्रम साबित होती है । अतः क्या प्रजा आवध्यता भिःस्वार्थ और आत्म-त्याग दिखलाबेगी ? अपना और अपने आश्चितोंका स्वार्थ-साधन करनेगो प्रशोगनसे दया बह दूर रहेगी ? खुद सत्ता पानेंके लिये जरा भी छीना-गपठी करनेसे बहुसंब्यक लोगोंको बहू छाभ नहीं होगाजो ऐसे बुंड्िभत्तापुर्ण और निशुचयी नेतृत्वसे होगा णिसमोीं आज्ञापालनके लिये सब स्वेच्छापूर्वक तैयार हों । काठियावाड़ अस्वरूनी कुचकोंके लिये प्रसिद्ध हैँ । उससे” जहाँ बीरोंकोपेदा करतेकी खासियत है वहाँ राजनीतिशोंकीऐसी जाति भी मौजूद हैजिसके जीवनका एकमात्र उद्देश्य अपना स्वार्थ सिद्ध करना है। अगर इस राजनी-

तिन्नोंकीचली तो राजकोट राम-राज्य नहींहोगा। राम-राज्यका मतरूब तो है सर्वेतोमुखो स्वार्थ-त्याग । उसके लिये छोगोंकोअपने ऊपर अपने आप अंकुश लगाना होगा। प्रजा अगर रचनात्मक अहिसाको असली रूप दे, तो राजकोठकी प्रणाका ऐसा प्रभाव पड़ेगा जिरासे

राजकोट आसानीके साथ एक अनुकरणीस उदाहरण बन जायगा। इसलिये बिजबके इस अवसरपर आत्मसंतोष करने और व्यर्थफी खुशियाँ भनानेपो बजाय विभश्षता, आत्म-निरीक्षण ओर ईवबर-प्रार्थनासे काम लेना चाहिये। में' सब कुछ उत्सु-

कताके साथ देखता रहँगा और ईववरसे प्रार्थना करूँगा । हुरिजन सेवक ७ जगवरी,

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