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राजकोट

राजफोटको लड़ाई जैसी दानके साथ शुरू हुई थी उसी तरह अभी हालमें ही समाप्त भी हो गयी हूँ, लेकिन अभी तक उसके बारे में मैंने शायद ही कुछ फहा हो। भेरी खामोशीकी यहू बजहू नहीं कि उससमें मेरी दिलचस्पी न हो। इस राज्यके साथ सेरे जो गहरे ताललुकात रहे है” उनके फारण महु तो सम्भव ही नहीं हैं। इस रियासत मेरे पिता वीवाम भे। इसके अलावा, वर्तमान ठाकुर साहबके पिता, जिनका कि अब स्वर्गंवास हो चुका हैं, मुझे अपने पिताकी तरह भानते थे। मेरी सामोज्ञीफी बात तो यह थी कि संरवार बललभभाई इस - भानवोलभफी आत्मा थे और उनकी या उनके कामफी प्रशंसा करना आत्मस्तुति फरलेके समान द्वोगा।

इस लड़ाईने यह बतला दिया है कि अगर सामान्य प्रजा काफी तौरसे उसपर अमल करे, तो अहिसात्मक असहयोग क्या नहीं कर सकता है। राजकोटकी प्रजाने इस छड़ाईमें जो एकता, पृढ़ता और फष्ट-सहुनकी क्षमता बतलायी हैउसको मुझे खिलफुल आशा नहीं थौ। लेकित लोगोंनेबतला विया हैँ कि अपने धासककी बनिस्वत थे सहान है और अहिसात्मक कार्य एफसत प्रजाके सामने अंग्रेज दीवानकी भी कुछ नहीं चल सकती।

मेरे पास जो कागजात है"उनसे में जानता हूँकि रेजिडेण्ठके समर्थनसे सर पैट्िक फौडलने जो फुछ फिया वह ठाकुरसाहबके नौकरकी हैसियतसे घड़ा अंशोभनीय है। उन्‍्हींने तो इस तरहकां काम किया भानों वही राज्यके मालिक हो । इस बातका कि थे शासक जातिक है, याने अंग्रेज हैँ",और उनकी नियुक्त केकछीय सत्ता द्वारा हुईहै,उन्होंने बड़ा हुर्पैयोग कियाहैऔर वे यह मासकर चलें कि अपनी भतमानी करनेका उन्हें पुरा अध्तिथार है। यहू लिखते वक्ततक में यह नहीं जासता कि बहु नौकरीसे हुए गये या क्या हुआ। मेरे पास जो पत्र-व्यवहारहै”उनसे जाहिर हीता है कि अंग्रेज दीवानका रखता कप्वांतक अक्लसन्वीकी घात है। इसपर राजाओंको गम्भीरताकें साथ घिचार करना चाहिमे। फ्ैखीय सताकों भी अपने रेजिड्रेण्टोपर इस घातकी तिगरानी रखनी चाहिये कि ससकी घोषणाओंकेशब्दोंपरही नहीं बल्कि उनमे निहित भावनापर भी अमछ होता है था नहीं ।

जो राजा रेजिड्रेण्टोंके ४रसे भरे जाते हैं, आधा है। मे राजकोंठफे इस वदाहरणसे जान जायेंगे कि अगर पेसत्चे हुं"और उसकी प्रजा पस्तुतः उसके साथ है,तो उन्हें रेंजिडेण्टोंसे शरनेकी शो जरुरत महीं । मिश्सस्पेह उर्हें महु महसूस करना चाहिमे कि सार्वभौभ सत्ता ने तो शिसलाम है, स ध्हाहटहाऊमे, बल्कि उनफी पाते ही उसका निवास है। अपनी अहिसास्मक दॉक्तिपर विष्यास रखतेबांसी जागूत प्रजा तो संदास्य शव्तियोंके किसी भी सम्मिलतके सामने स्वतंत्र ही रहुतो है। राजकोधमे तीन महीवेके भर जो कुछ हुआ वही हुरएक रिपासतम हो सकताहै,चततेंपहाँकीं प्रजा भी पेसी 820:जेसी कि लजकोडकी सॉम्रित हुई है।