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अहिंसाका अमल "यूरोपके सकट और पश्चिमोगर सीमाप्रान्तके बारेगे'हरिजन' के हाल के अवों में आपने जो कुछ लिखा, उसे में बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ता रहा है। लेकिन अहिसाकी समस्यामे एक वात ऐमीहे जिसके बारे रामय होता तो में सेगॉवमे ही आपसे बातचीत करता, क्योकि उसका उल्लेख आप यावो कभी करते ही नरीमानभी पदानित ही करते हैं। आप कहते है कि अहिंमास्मक सहयोगको जिस रूपमें आगने पेश किया है उस स्पर्म वह उस हिसाका जबाब है जो अब मारे मसारका ध्यस करनेगर उतारू है। ऐसी भावना और ऐसे कामका जो महान असर हो साता है उसके बारेमें कोई सन्देह नहीं। लेकिन यात्रु-मित्र सनके लिए एक समान नि स्वार्थ प्रेगकी अहिमात्मक भावनाको सफल होने के लिए क्या यह जररी नहीं है कि यह शासन के उदार, लोकतन्त्रात्मक और गैध रूपमे प्रदर्शित हो? कानून और सरकारको बगैर समाज कायम नही रह सकता। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तबतक स्थापित नही हो सकती, जनतक विभिन्न राष्ट्र वेधानिक शासनकी ऐसी पद्धतिको स्वीकार न कर ले जो उन्हे एकता और कानून प्रदान करके उनकी अराजकताका खात्मा कर दे। इसमें कोई शक नही कि किसी-न-किसी दिन ईश्वरीय कानून गनष्यो के दिल थ दिमागोंपर इस तरह अंकित हो जायगा कि उसका पालन करने के लिए किसी गानधी कानून' या शासनकी कोई जरूरत नही होगी, बल्कि व्यक्तिगत रूपमे वे शुद ही उस के निदेशया बन जायेगे। लेकिन यह अन्लिग बान है। इस स्वर्गीय लक्ष्यकी ओर बनेका आरंभ इस रूप होना जरूरी है कि सबसे पहले विविध जातियाँ, धर्म और राष्ट्र एक ऐसे विधान के अन्तर्गत एकता रखनेको रजामंद हो, जिसके द्वारा उनकी एकता और पारस्परिक सदम्यता कायम हो। जिन कानूनों के मातहत वे उनपर सार्वजनिक विचारोपरान्त नहुमत्तम निश्चय के किसी रूप में जारी होते है और जहा स्वेच्छापूर्वक उनका पालन नहीं होता वहाँ , समझाने-बुझाने और उदाहरण पेश करने से काम न चलनेपर युद्ध के रूपमें नहीं बल्लिा पुलिस के बकपर उनका पालन कराया जाता है । खुदमुख्तार राष्ट्रों के बीन रचनात्मक अहिताकी भावनासे काम लेने से हग संप-शासन (फेडरेशन) के किसी-न-किसी रूपपर ही पहुंचेंगे। क्योकि ऐसा किये बगैर यह कामयाब नहीं हो सकती। वह प्रभावकारमा रूप कायम है, इसका सबूत समास्मिक पद्धति का सामने आना होगा। इस प्रकार यूरोपकी समस्याका एकमात्र सच्चा हल यही है कि २५ प्रजाओं और राष्ट्रों का एक प्रजातंत्रताक विधान के मातहत एक संघ अनाया जाय जो ऐसी सरক্ষাঙ্গ সিপি ঋইলী সুখীসঙ্গী' ব্যসল্পী লিমা সুলমণিী স্বীয় স্ব-নির্দিী राष्ट्रों के रूपमें उनके लिए कानून बना सके। इसी सपमें भारतीय समस्यामा एकमात्र हल यह है कि ग्रेट ब्रिटेनके नियंत्रण के लिए यहाँ डेमोक्रेटिक कॉस्टीट्यूशन कायम किया जाय। और जो यूरोप भारत के लिए ठीक है, कालातरमें वही सारी दुनिया के लिए ठीक और युद्ध रोकनेका एकमात्र अंतिम साधन है। दिल और दिमागमे एसा परिवर्तन करनेका, जिनसे राष्ट्र संघीय लोमा तंत्रात्मक विधानको स्वीकार कर सके, अहिंसात्मक असहयोग सर्वोत्तम और शायद एकमात्र