पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/४२

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ध्रदिषा रेजिडेण्ड लि० गरिब्सनसे बातचीत करते हये जब मेने यहू कहा कि कंसेटी बनानेका काम ठाकुर साहुबपर ही छोड़ दिया जाय,जिसे कुछ मि० गिब्सनने साहुसकी बात बताथी उस ससय अँधरेम उजालेकी तरह यह बात मेरे ध्यागमे आयी १ तभी मुझ यह बात सुझी जिसे सेचे नया तरीका फह है । बढ बात खतरेले खाली नहीं है, यहइसीसे र॒पष्ट हैकि जो कुछ पहाँ हो रहा था उन सबको मुझे रोफ देना पड़ा है। राजकोटकी लड़ाईमे अपने उपयासके समय सुझें सथाठके प्रतिनिधिके हस्तक्षेपका सहारा लेना पड़ा, और उसके याद उनके राजकोट-स्थित प्रतिनिधि रेजिडेण्टसे भे

मदद सांग रहा हूँ ।जब गेने वह 'साहसपुूर्ण' बात कही तो मुझे आएचर्स हूँकि क्यों मे सर्वोच्चि सत्ताफो भुलाकर एकमा+ राज्यपर ही सारा ध्यान लगानेकी मही सोच रद था। लेकिन शायद ऐसे श।हुसकी हिम्भत नहीं थी। अभी भी में यह सनिशइवय तहीं कर तका हूँ कि राजकोटफ

सामलेसे मुझे सर्वोच्च सताके पास नहीं जाना चाहियें, ग्वायर-एवबार्डकी लोगोको फाड़ पेनेकी सलाह देनी चाहिये, और' तय सिरेसे राज्यके साथ ही सब मासला शुरू करता चाहिये। उस

हालतमें मेरा सत्याग्रह सिरे राज्यके साथ होगा, और राजकोटफे अधिकारियोंफा हृदक-परिपर्तव करमेके लिये मुझे अपने प्राणोंकी भी बाजी रूगा देती होगी। तब उस समय अवूभुत प्रयोगशाला याने राजकौटपर ही मेरे सारे प्रयोग सीमित होंगे। मेरी निराशाकी तहमे सेरी अहिसाका कोई प्रभाव ही ती, अहिसाफी दुएिटिसे, थे प्रयोग मिश्चय ही अधिक संपूर्ण होगे।

अहिंसावादी अब कांग्रेसकी सड़न था अस्वच्छताकों लीजिये। भक्ता कांग्रेसमें इतनी गन्दंगी क्‍यों

होगी चाहिपे ? और इस सब गन्दगीके होते हुमे हम “कांग्रेसवादी” नासके पान कैसे हो सकते हैं? आपमेंसे कुछ लोग गात्थीयादी फहुलाते है। गात्थीयादी मास कोई रखनेके काबिल भहीं

हुँ। इसके बजाय तो गहिसावादी क्‍यों न कहा जाय, क्योकि गासथी तो अण्छाई भोर बुराई, निर्बंता और बठ, हिसा और अहिंसाका सम्सिश्रण है, पर अधहिसासे कोई सिलाब सहीं है । अब प्रतलाइये कि अहिरावादीकी हैसियतसे क्या आप यह कह सकते है किआप शुद्ध अहिसाका

पालन कर सफते है?क्या आप यह कह राकते हेकि अपने विरोधीके तीरोंकी आप अपने सतसें उससे बदला लेनेशी संभावना रवसे बगेर छाती ख्ोतकर ओोढ़ लेते है ? क्या आप फह सकते है

कि अपनी मुक्ताचीनीपर आप भाराज और क्षुब्ध नहीं होते ? सुझे भय हैकि बहुतते लोग ऐसी कोई बात नहीं कह सकते । आप इसपेर चलते यह फहेगे कि जुद आपने हीइस हृदतक अहिसाका पान करनेका दावा अभी नहीं किया है । ऐसा होतो मेंमानता हूँउस हुश्तक अधिसा-पालम सबोष रहा है। महितता

तो अपने बोषोंकों बढ़ाकर और अपने विरोधीके दोषोंकों कम करके बताती है। अधिसावादी अपनी आलोके घिनकेकों पहाड़ समझता हैऔर अपने विशेधीके पहाड़की लिमका समझता है। पर हमने तो इससे अव्यया किया है ।

बेशी राफयोंका जहातक सवाल हैहमसे कहा गह हैकि हम राजाओंकों तब्ठ भहीं करना २६३