पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/४३

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गांधीजी याहते, हम तो उनके शासन में सुधार करके उन्हें परिवर्तित भर करना चाहते हैं। पर हमारी वाणीने अवसर हमारे बायोको झूठा ही साबित किया है। राजकोटके बारेमें यद्यपि मैने यह वक्तव्य दिया है, लेकिन मैं मह आपको विश्वास मैं दिलाता हूँ कि मैं रामकोटको बासधार नहीं छोड़ेगा । अपने कार्यकर्ताओंका साथ छोड़कर उन्हें मार्ग-नष्ट होनेका ही मौका देगा। अगर में ऐसा करूँ तो जरूर वह सठिया जानेकी निशानी होगी, लेकिन गै सटिया गया हूँ, ऐसा मुझे नहीं मालूग पड़ता। इसके विरुद्ध को इस बासकी प्रार्थना कर रहा हूँ कि महांके कार्यकर्ताओंकी शक्ति दिनदनी बढ़े। मैं तो पहले सरोके एस तीन परिवर्तन भर करने को कह रहा हूँ। आप लोगोंमें भी गंदगी यह कहने के बाद अब मै गान्धी-सेवा-संघपर आता हूँ। अबतक मैने जो कुछ कहा है उसपर मापने ध्यान रखा हो तो आप यह शायव समझ गये होंगे कि हमें अपनेको थोड़ा बहुत नये सायम हालगा पड़ेगा। हमें अपने राई अपनी यरह छानबीन कर यह पता लगाना पड़ेगा कि कसोटीपर हम बाहोसफ खरे उतरते है। अगर हम उसमें खरे न उतरते हो, तो हमारे लिये यह बेहतर होगा कि हम अपने सदस्योधी संख्या घटा । सत्य और यहिशान हबसे श्रद्धा रखने भाले २० भी सच्चे सवस्य हो तो वह २०० ऐसे सदस्यों से अच्छे रहेंगे जो इस ओरले उदासीन हों। क्योंकि वे तो एक दिन हमें सर्वनाशपर ले आयेगे, जब कि २० के वौलत शायद सच्चे समस्योंकी ही संख्या २०० तक पहुँच जाये। गन्दगी तो क्या संप भी नहीं आ गयी है ? संघके सदस्यों ने क्या धूर्तता, सम्वेह और पारस्परिक अविश्वासको नहीं अपनाया है ? सप सपस्योंको मैं नहीं पहचानता, मै तो सिर्फ कुछ के ही नाम जानता हूँ। इसलिये अपनी व्यक्तिगत जानकारीमें नहीं बल्कि अपने मर्यादित अनुभषके आधारपर हो मैं यह माह रहा हूँ। बदकिस्मतोसे जमनालालजी यहां नहीं हैं। जिनकी बहुल सो संस्थाओंसे उनका सम्बन्म है, उनको अनुभवों में उन्होंने अक्सर मेरे साप हिस्सा बढ़ाया है। उनको निविघ्न रूपले चलने में कठिनाई क्यों होनी चाहिये? भला, हम पूर्ण विश्वासके साथ अपने कार्यकर्ताओंको बेशके एक भागसे दूसरे मागका काम सम्हालने के लिये क्यों नहीं ईश्वरमें जीवित श्रद्धा यह सब मैं आपके दोष निकालने के लिये नहीं कह रहा हूँ, बल्कि इसलिए कि अनुशासन और हमारे सिद्धान्तोंका कडाईले पालन करनेकी जरूरतको आप अच्छी तरह महसूस कर लें। रात्यामहीको ईश्वरमें जीवित अक्षा होमी प्राहिये। यह इसलिये कि वैश्वर में अपनी अटल शक्षा सिवाय उसके पास कोई दूसराइल नहीं होगा। बगैर उस भाके सत्याग्रहका अस्त्र पह किस प्रकार हायमें ले सकता है ? आप लोगोंमेरो, जो ईयरमें ऐसी जीवित बदाम रखते हो, उनसे तो मैं यही कहूँगा कि ये गान्धी सेवा-संघको छोड़ , और सत्याग्रहका नाम भूल जायें। २६४