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गांधोजो

विचार नहों करना चाहता कि उतपर लगाये गये आरोप सही थे या गलत । उनपर बहस फरगेकी यह जगह नहीं है ।यह कहना हो काफी होगा कि बह अहिधाका मार्ग नहीं था, और न उनपर अबतक उसका प्रयोग ही किया गया है। और मुझे अपने विरुद्ध बहू भी जात कहने

दी जाय कि में बोहरी चाल खेलनेका गुनहगार था--यानी एक ओर तो ग्वायर-निर्णयकी तलवार उनके सरपर लटकाये रहता था और दूसरी ओर उससे प्रार्थना करता और आशा रखता था फि ये स्वेच्छासे ठाकुर साहुबको उदार शासन-सुधारकी सलाह देंगे।

मेंयह मानता हूँकि यह तरीका अहिसासे बिलकुल सेल नहीं रखता। जब मेने १९

एप्रिलकों यकायक सि० गिव्सनके सामते तजबीज रखी, जो कि खिलाड़ी जैसी तजबोज कही जाती है, तब मुझे अपनी कमजोरीका पता रकूगा । मगर तब मुझमें यह कहनेका साहस नहीं था, कि मे निर्णय'से कोई मतलूब नहीं रखना चाहुता। इसके बजाय, मेंने तो यह कहा “--व्कुर साहब अपनी कमेटी नियुक्त करें, तब परिषद्‌के आदमी निर्णयकी शातोंके अनु»

सार उस रिपोर्टफी जाँच करेंगे, और अगर यह वोषपूर्ण हुई तो वह फैसलेके लिए भारतके चीफ जस्टिसके पास भेजी जायगी। दरबार श्रीवीरावालको इसमें एक नुक्स दिखायी दिया, और ठीक ही उन्होंने यह कह-

कर मेरी तजबीजकों खारिज कर दिया, कि अब भी आप निर्णयकी हलूवार मेरे सरपर लटकाये हुएहैं,और ठाकुर साहबकी कमेटीके अपर कोर्द आफ अपीछ चाहते हैं! अगर ऐसी बात

' हुँ,वो आपका जितता उचित हूँ उतना ले लीजिये इससे अधिक आपको नहीं मिल सकता / उनके एतराजमें जोर था, यह मेने अनुभव. किया। सेंने उनसे यह भी कहा कि सें निर्णयको ताकपर रख देनेकी हिम्मत अपनेभ नहीं देखता,मगर भें फिर भी उत्तसे पैरणी करूँगा कि भजाके साथ समझौता करा ले ओर यहू समझ हें कि ग्वायर-निर्णय अस्तित्वमें नहों हैऔर में तथा सरवार बीचसे हट गये हैं। उन्होंने बचत विया कि वे प्रयत्न फरेंगे। उन्होंने अपने तरीकेसे इसके लिए कोहिदा भी की सगर उदार-हुदयसे नहीं । मेंउन्हें इसके लिए दोष नहीं देता। भें उनसे उदारताकी कैसे आज्ञा रख सकता था, जब कि ने जानते थे कि बुजदिलोसे स्वायर-निर्णयसे चिपटा हुआ हूं? आखिरकार मभैंते अपना खोया हुआ साहस फिर पा लिया ।

भूल स्वीकार करने और परचातापसे अधहिंसांकी सार्वभौभ-शक्ततिमें मेरी अद्धा और भी एबलत्त' हो गयी है ।

भुझे अपने सहयोगियोंके साथ अन्याय नहीं ब्ारना चाहिये । उनमेंसे बहुत गरूतफहसियोंसे भरे हुये है। सेरी अहिसाकी व्याख्या उनकेलिए तयी नहीं है । मेरे पश्चासापके लिए

वे कोई जगह नहीं देखते । उनका ए्याल है कि एक राजनीतिक नेता होनेक्े कारण ७५०००, नहीं, नहीं, समस्त काठियाबाड़की प्रजाके भाग्यके साथ इस तरह खिलथाड़ करनेका सुझे फोई

अधिकार नहीं हूँ । मैंने उनसे कहा कि उनका यहू भय अनुचित है, और शुझ्धिके प्रत्येफ कार्यसे,

साहसकी प्रत्येक उपलब्धिसे सत्याग्रह-आँबोलनसे प्रभावित भजा-पक्षकी शवित बढ़ती है । मेने उनसे यह भो कहा है कि अगर वे सुझें अपना सेनापति और सत्याप्रहक्रा विशेषज्ञ समझते है,तो

उन्‍हेंउसके साथ रहमा और चलता चाहिये, जी उन्हें मेरी शतक ही क्यों नभालूम होती हों।

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