पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/५०

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जड़ मूलका मतभेद प्रशन--'त्तारी जड़ तो आप और सुभाष बाबूके बीच गूलशूत मतभेदोंकी है ? क्या आप संक्षेपमें बतला सकते हूँकि वे भतशेद वया है ? उत्तर--हमारे पत्र-व्यवहारसे यह बात जाहिर है, लेकिन मे उसे प्रकाशित करनेक्े

लिए स्वतंत्र नहीं छँ ।/ (इसके बाद तो सुभाष बाबू उसे प्रकाशित कर चुके है। ) लेकिन से समझता हूंकि हमारे मतभेद जग-जाहिर हैं। ल्रिटिश सरकारणों चुनौती वेनेकी जो बात उन्होंने कही है उसोको छे लीजिये। बहु समझते हैं कि ब्रिटिश सरकारको चुनौती देनेके कायक *

स्थित्ति है, पर मुझे लगता है कि आज अहिसात्मक लड़ाई छेड़ना और चराना अशक्य है । जो लोग हिंसामें विश्वास फरते हूँ उनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है । राणपुर, रामदुर्ग और कानपुर इस बातके संकेत हैं। युकतप्राग्तके कानपुर तथा अन्य नगरोंकी स्थितिपर पन्तजीका' अहिसात्मक नियंत्रण बहुत कम है.और जिन कठिनाइयोंका हमें सामना करना पड़ रहा

है. शिया-सुन्नीका प्रगड़ा उसका एक सया नमूना है। ने केवल भर-कॉँग्रेसियोंपर ही हमारा काबू नहीं है बल्फि खुद कॉमग्रेसियोंपर भी हमारा बहुत कम काबू है। एक समय था जब देशके अधिकाँश लोग हमारी बात सुना करते थे, आज तो अनेक काँग्रेलवादी भी हमारे हाथोंमें नहीं हूँ ।नमक-संत्याग्रहुके दांडी-मार्चका संगठन करनेकी आज मेरी हिम्मत नहीं है । भाज तो सारा वातावरण उलटा हमारे अनुपयुक्त है ।फ़ेकिन सुभाष घाबूका विचार इससे उलदा है ।

अब कॉँग्रेसियोंसें फैली हुई गरदगीको लछोजिये। कॉँग्रेसमें जो गन्दगी फेल रही ह उसे हुर करनेके लिए में सारे कॉप्रेस-तंत्रकोी ही शाइस्तगीके साथ दफना देवेके लिए तेयार हूँ। कार्येसमितिके सब सदस्मोंकों से अपने इस विचारपर सहमत कर सकता हूँ,यह में नहीं जानता । लेकिन यह में जातता हूँकि शायद सुभाष बाबूकों में अपने साथ सहमत नहीं कर सकता । संक्षेपर्म, मेरा यह थिंद्धास है कि हिंसा और गर्दगीका आज बोलबाला है। फेकिम बहु इस बारेमें मुझसे सहमंत नहीं हैं। इसलिए उनकी योजनाएं और कार्यक्रम मेरी योजनाओं और कार्मक्रमोंसे भिन्न ही होने चाहिये ।

प्रष्म-+-समाजवादियों मतभेद हैं ?

और पं०णवाहरछाल नेहरूके साथ भी क्या 'जापका ऐसा ही' हि

उत्तर->दूसरी बाधोॉंकी मिछाकर भोछमाल न कीजिये । चुनौतीकी कल्पना भूलसे ही सुभाष बाबुकी हैऔर कितने लोग इसे स्वीकार करते हैंयह मेंमही जानता । इसके अलावा जवाहरकाल और दुसरे समाजवादी मिन्रोंसें भी सतंसेद है । समाजवादियोंसे मेरा जो भतभेद

है उसे संब जामते हैं। मेरा विश्वास हैकि समृष्यक्षा स्वभाव सुधर सकता हैऔर उसके लिए

हुमें प्रमं्त करना चाहिंगे। ते लोग इससें विधवास महीं करते । लेकित सुझे आपकों बता

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