पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/५१

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गांधीजी देवा चाहिये कि हम लोग एक दुरारेके अपिक्राधिक निकट आ रहे है । था ती वे मेरी ओर जिध रहे है था में धमफ्ी ओर खिल रह हूँ ।जवाहुरलालका जहां तक सवाल है, हम जानते हैफि हमजेंचे फियीौका भी एक इंसरेफे बिया काम गहीं बरकू सकता, क्योंकि हसलोगोमें ऐसी आत्मो-

बता हैं जिले कोई वोड्धिक जतभेद नष्ट नहीं फट सफते ।

लेकिंग से आपसे छुछ और भी फ्ताश । अगर आप सब अपने घोधके प्रति सब्वे हैं तो थो शवाल आपरे किये वे किये ही नहीं जाने चाहिये थे । हम तो सर्वधर्भ-सपानत्म यात्री स। धर्म-विष्यासोंक्त प्रति राभान शद्धाें विश्वास करते है । इपलिए जिल्हें दध्यिगपन्थी ओर परशपन्‍्थी दाह जाता है, उनकी सान्यताओंधें भी हमे समाय अद्भा रखनी चाहिये । लेफित

जैले ६एकास और ईसाई धर्मके प्रति समान भद्धाका अर्थ यह नहीं हैकि भे उस बोसॉगेंसे किसी धर्मदतों अंगीकार फर' लछूं। इसी प्रकार समान शअद्धाका यह सतलब नहीं होता बाहिये फि आप तुसरोकि विवारोंकों अपना ले । मेरी रामात श्रद्धा तो मुझे इसी बातके लिए बाण्य परती हैफि

उनके दृष्टिकोणकों मे रामझ लूं. जिप्तते कि जिस दृष्टिफोणसे थे अपने पर्मफो देखते हैउक्षकी भें क्र कर सकू । इसका अरे यह हुआ कि जिन बातोंमें भिन्नता हो उनपर हुत ध्यान | दें ।

उच्हीं बातोंपर जोर दे जिनमे भतैषय हो ।

ओर एकताफी राव संभव बालोंक्षा पता लगानेयें भला कोई कठिनाई वयों होनी जाहिये ? फिसी बातका पता ऊगानेका राजमार्ग हैविष्यास और सरल स्वभाव । बाइबिलसें दो सुलहरे वियस हैं । बाइबिरूकी बात जो में कह रहा हूँउसका यहु सतलब नहीं कि हमारे शास्प्रो्मे ऐसे उपदेश नहीं हैं, लेकिस इस समय सुझे उन्हींकी याद आ रही है। यागे “विरोधीके साथ

पू फोरत समझौता कर ले” और “अपने रोषपर आजके सुरुजकी अस्त न होने दे” ।जबतक आप इसके अनुसार आवरण न करें आप संघके उपयुक्त सदस्य नहीं है,क्योंकि इल दोनों ही नियमोंका

उद्गम अधहिसाका यह सिद्धान्त ही है। सीने हिसाके मुंहर्से बले जानेका दूसरा फोई अर्थ ही नहीं है । जब मुझे यह बताया गया कि आपसेंते कुछ लोगोंके विलमें सरदारके बारेमें संदेह है

सब गुझे बहूउगा कि आपसे यह कहूँ । आपको उनके पास सीधे जाना चाहिये और उससे फीफिपत साँगती चाहिये । अगर आपकी उनके जबावसे संतोष न हो, आपके विधारमें उनकी

सकाई अधिताफी कस्ोटीपर खरी न उतरे, तो आप सरदारसे कहें कि थे गाँधी-रोचा-संघसे अलग ही जायें ।

से आशा करता हूँकि ये सतभेद अस्थायी हैं। पर वे कामसें बराबर एकावरें डाल रहे

हों, और दुर होगा असंभव हो गया हो, तब तो जितनी ही जल्दी हुमा संघको खतभ कर पें उतना ही अच्छा | क्योंकि राबकी कह्पनामें सत्य और अहिसाकी शक्तियोंकी संगत करनेकी संभावता हूँ । पर हमें हमेशा हो अपने सतभेवोंपर बहस करते रहना है, तो हमें यह भानना

चाहिये कि कस से कम हसलोगोंमें इत भहान व्यक्तियोंके संगठित करनेकी क्षमता नहीं है ।

लेकिम आपने जो यह आवेइमक प्रदम पूछा है-र

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