पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/५३

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उलभन क्‍यों ? मुझे ठुःख है कि देशी राज्योंके संबंधमे मेने जो वक्तव्य हालमे दिये हे उन्होंने ऐसे लोगोंकों भी परेशानीम डाल दिया हैजिन्हें कि मेरे लेखों और कार्योकों समक्षनेंमें कोई कठियाई

नहीं हुई । किन्‍्तु राजकोठके मेरे वक्‍तब्योंने, राजकोटके मेरे कार्योने ओर त्रावणाक्ोर संबंधी मेरे बकतव्यने, हल सबने सिलक्र मूल उलझनकों और पेचीद! बना दिया हैँ । प्यारेछाल और पीछेसे भध्दाविष मेरे लेख तथा कार्योकों उनके सच्चे अर्थ समझानेका वीरजापुर्यक प्रथत्षा कर

रहे है । में यह जानता हूँकि ये अपने प्रयत्मसे गलतफहमीकों कुछ हृदतक दूर +९ राके हैं। पर भे देखता हूँकि भुझे खुद भी कुछ समक्षानेकी जरूरत है। इसलिए अपने हालके डेख्धों तथा कार्योका जो अर्थ मेसमझता हूँउस अर्थकों जनताके समक्ष रखसेका प्रयत्न सुझ्ते फरगा ही चाहिए।

सबसे पहुले तो इन कार्थों तथ। लेखोंका जो अर्थ नहीं है वह कह दूं। एफ धो यह कि व्यक्तिगत, सामूहिक या जन-साथारणके सत्याभ्रहरों संबंध रखनेवाले मेरे घिचारोंसें फोई

तबदीलो नहीं हुई। उसी प्रकार, काँग्रेस और राजाओंके बीच अथवा राजाओं और उनकी प्रजाके बीच विस तरहका संबंध होना चाहिए इस विषयमें मेरे घिचारोंभें भी कोई परिनर्तम

नहीं हुआ और मेरी उस राथसें भी कि सार्वभौमसत्ताने इतने दिनों तफ देशी रा्योंकी प्रजाके प्रति अपने जिस कर्तव्यकी बुरी तरह्‌ अबगणना को है उसका पाछ्तर करना आज बहुत

जरूरी है-कोईं अन्तर नहीं पड़ा । मेरा पश्याताप तो मेरी एक हो भूलके संबंधर्मं था, और वह यह कि जिस ईदवरफे सामपर राजकोटसें मेने अनशन किया था उसके प्रणोंमें चित्त लगाये रखनेकी ओर गेने अन्तरभें अविदवासफा स्थान दिया, और भायसरायके हस्तक्षेपसे प्रभुक्ते कॉर्यकी पति करनेका प्रयास किया । ईदवरपर आधार रखनेफे बदले वायसरायपर आधार

रखमेंसें या यों कहिये कि ठाकुर साहबको ठिफाने रूगानेके लिए वायसरायकों ईइ१रकी गददसे बुलानेका सेने प्रथत्व किया । सेरा यह कास निरी हिंसाका था। इस प्रकारकी हिसाके लिए मेरे अनदाम् जरा भी स्थान नहीं हो सकता |

इस राजकोट-अकरणने सेरे' जीवन जिस नये सत्य-दर्योनकी घृद्धि की वह यह हैकि

ठेढ १९२०से लेकर राष्ट्रीय आवोलनके संबंधर्म जिस अहिसाका दावा हम करते आ रहे हूँबह अदभुत होते हुए भी सर्वधा पिशुद्ध नहीं थी। अतः जो. परिणाम आजतक

हुए थे पश्मपि

असाधारण पहे जा सकते हैंतथापि हमारी अहिंसा यदि बिलकुल विशुद्ध होती तो उसके परिणास बहुत अधिक मूल्यवात साबित होते । सन-वाणी सहित सम्पूर्ण अहिसाफी लड़ाईसे

विदोधीमें स्थायी हिसाव॒ुत्ति कभी पेदा हो नहीं सकती । लेकिन मेंसे देखा कि पेशी राज्योंकी

लड़ाईने राजाओं तथा उनके सह्लाहकारोंम हिंसावृत्ति पैदाकर दी है । काँग्रेसके प्रति अधि+ इथाससे आज उसका अन्तर भरा हुआ हूँ। जिसे थे कॉग्रेसकी व्स्तंदाशी ऋहुते है, उस 0-।