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अनुचित जोर

यह पूछा गया है कि--

“जिस स्वराजके लिए हम लड़ाई लड़ रहे है उसका क्या होगा? गान्धीजीका अहिंसामें अगाध विश्वास,जो पहले कियी समयकी अपेक्षा आज बहुत अधिक गहरा हो गया है, उन लोगोंको कैसे सहायता पहुँचायेगा,जो जल्दी ही स्वराज्य चाहते है। गान्धीजी अहिसाको जिस रूपसे देखते है,उस रूप पर इतना जोर देनेसे स्व॒राज्य क्या एक ऐसा स्वप्न तो नहीं बन जायगा जिसका पूर्ण होना ही कठिन हो?

(गांधीजीने अपना वक्‍तव्य समझाते हुए उसका यह जवाब दिया)- जैसा कि मैंने अक्सर कहा है,मेरे लिए तो यह सच है कि स्वराज्यसे पहले अहिंसा आती है। मैं अराजकता और लालक्रांतिके द्वारा शक्ति हासिल करनेकी जरा भी इच्छा न करूंगा, क्योंकि मैं सबसे कमजोर और छोटे मनुष्यके लिए भी स्वतंत्रता चाहता हूँ और यह तभी हो सकता है,जब अहिंसा से हम स्वतंन्नता प्राप्त करें। यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो कमजोर मर जायगा और सिर्फ ताकतवर ही सत्तापर अधिकार करेगा, उसका उपयोग करेगा।

फिर आप लोग भी, दरअसल कुछ काम करना चाहते हैं, तो अहिंसाको और सब बातोंसे पहिले रखे बगैर नहीं रह सकते। जब अहिंसाको मान लिया तब उसे और सब बातोंसे पहिले रखता ही होगा। और सिर्फ इसी हालतमें विरोधी अहिंसाका मुकाबला नहीं कर सकता। अगर ऐसा नहीं करेंगे, तो यह एक खाली पोल, और प्रभाव और शक्तिसे रहित निस्तेज वस्तु हो जायगी। एक सिपाही जब अपनी जान हथेलीपर रखकर लड़ता है, तभी उसकी दुर्दमनीय शक्तिका विरोध करता कठित हो जाता है। अहिसाके सिपाहीके लिए भी यही बात है।

"लेकिन इस नीचे उतरनेसे काम कैसे चलेगा? किस तरह हमें अपने उत्तरदायी शासनका ध्येय प्राप्त करनेमें सफलता मिलेगी?” एक दूसरे मित्रते पूछा।

आज जब हम उत्तरदायी शासनकी बातें करते हैं तब इससे रियासतोंके अधिकारी भयभीत हो जाते हैं। वे समझते हैं कि उसका परिणाम होगा लालक्रांति और अराजकता। उनकी दलीलमें वजन नहीं है, लेकिन फिर भी उन्‍हें तो ईमानदार समझना चाहिए। अगर आप मेरी सलाह समझ लें, तो आप कहेंगे 'कुछ समयके लिए हम स्वराज्यको भूल जायें। हम जनताके प्राथमिक अधिकारोंको प्राप्त करनेके लिए लड़ेंगे, ताकि रिश्वतखोरी आदि ख़राबियाँ दूर हो सके।' संक्षिप्तमें, आप अपना सारा ध्यान शासन-प्रबंधकी तफसीली बातोंमें लगा देंगे। तब॑ अधिकारी डरेंगे नहीं और इससे आपको उत्तरदायी शासनका सारतत्व मिल जायगा। भारतवर्षमें मैंने जो क्रुछ कार्य किया है

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