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-ांषीजी उसका यही इतिहास है । यदि में सिर्फ स्वराज्यकी बात करता, तो में बिलकुल असफल रह जाता। तफ्सीलकी बातोंपर ध्यान देनेसे हम शक्ति भ्रहण करते गये।

दांडी-क्चके समय मेंने क्‍या किया था ? मैंने पूर्ण स्वराज्यनी अपनी सांगकों कम

करके सिर्फ ११ माँगों तक सीसित कर दिया था। पहले पहल तो मोतीलालजी सुझपर बहुत बिगड़े । “इस तरहसे झंडा नीचा करनेसे आखिर आपका मतलब क्या है 7” उन्होंने कहा । लेकिन उन्होंने जल्दी ही देख लिया कि अगर उन माँगोंको मान लिया जाय, तो आजादी हमारा दरवाजा खटखटाने लगेंगी।

, मैं अपने दिलकी उथरू-पुथछ भी आपको समझा दूं। जैसा कि आपको बता चुका हैं, भेंने समझा था कि रियासतोंमें हम जल्दी ही उत्तरदायी शासन

हासिल कर हेंगे।

लेकिन अब हमें मालूम हुआ हैफि हम' सब लोगोंको अहिसाके सार्गपर एकदर्स अपने साथ नहीं ले जा सकते । आप कहते हैंकि सिर्फ थोड़ेसे गुण्डे ही हिसा करते हूँ । लेकिन अहिसात्मक स्वराज्य प्राप्त करनेकी शक्तिका अर्थ हैकि उससे पहले हममें गृण्डोंपर ही काबू पानेकी ताकत हो, जैसे कि असहयोगके दिनोंसें हमने, क्षणिक शक्षित प्राप्त कर छी थी । अगर आपका हिंसाकी ताकतों पर भी पूरा फाबू है,अगर आप सर्वोच्च ब्रिटिश सत्ताकी बिना परता किये या मेरी अथवा कॉँग्रेसकी बाहरी सहायताकी अपेक्षाके बिना आखिरी दसतक लड़ाई जारी रखनेके लिए तैयार हैं, तो आपको कुछ समयके लिए भी अपनी माँग कस

करनेफी जरूरत नहीं। तब तो वरअसलू आप भेरी सलाहुकी जरूरत ही नहीं समझोंगे ।

लेकिन जैसा कि आप भी सानते हैं, आपकी हालत ऐसी नहीं है । जहाँ तक में जानता हूँ भारतकी और भी किसी रियासत ऐसी स्थिति “होती, तो सेरे कहे बगेर भो

कई स्थामोंपर सत्याग्रह स्थगित नहीं किया जाता । ५

हरिजन सेवक १ जुलाई, १९३९

कक ्ज

“वे तो मरता

जानते हैं उन्हें में अपनी अहिसा सफछता पूर्वक सिखा सकता है, जो मरनेसे डरते हैं उन्हें में अध्िसा नहीं- सिखा अ,

सकता [7 “गांधीजी