पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अहिसाकी अद्शुत शक्ति हि

$

दर

[का

एक पठान बीस्‍्स जी मुझे प्रयासमें भिे, हिसक कार्यके बारेखें बातचीत करते 7.4 बोले-“हमारी रार्कार इतती मजबूत हैकि हमारे किसी भी हिसक' कार्यकों चाहे कितना ही

संगठित गयों न हो, बड़ी जासानीसे दबा सकती है ।मगर आपकी भहिसा तो अजेय है। आपने एमारे देशको एफ अजीब हथियार दिया है। दुनियांसे ऐसी एक भी सरकार नहीं जो अधहिंसाको जेर कर सके । मेरे इम बोस्तने जहिसाके बारेमें जोमह्ठितीम विचार मेरे सामगे रख! है उसके लिये मैने उसकी त।रीफ फी। एक ही वावयमें उन्होंने ऑहसके अनुपत्ष सौन्द्यकों रख दिया। हिन्दुस्तान एसकी स्वाभाधिकता और अनाणासपुर्ण रीतिसे इसके सब फलिता्ोको अगर सभप्रा भर स्के।

तो यह जड़े-से-बड़्े हतलाबरोंके सुकाणलेसें अजेय रह सकता है । अधिंसाकी शिक्षा पागे हुए लोगोंपर हसला हो ही नहीं सकता । अर्थात्‌ सबसे कमजोर राज्य भी अगर अहिसाकी कराको सीख जाय, तो यह अपनेको एमलेसे बचा सकता है। लेकिन एक छोटा-सा राज्य चाठे वह दस्म्रोंसे

फित्नना ही सुसज्जित क्यों न हों, अच्छे अरत्न-शस्तघारी राष्ट्रोफे गुडफे बीज अपना जस्तित्व फायम गहीं रख सकता। उसे अपनेको यश तो सिदा देना पड़ता हैनहीं तो ऐसे शुठमेंसे किसी एक

राष्ट्रफे संरक्षणसेंरहुना भी पड़ता है। जैसा कि प्यारेलालने भेरे सोसाप्रान्तके प्रवासमें लिखा है। बावशाह खानका फहना है“अगर हम अधहिसाका सबका मं सीखते।तो हमारी बड़ी दुर्गति होती। हमने तो उसे अपने पूरे स्वार्थमे अपनाया है। हम तो जन्मसे ही छड़ाके हैं ओरहम इस' रिवाजको आपसमें

ही लड़कर' णारी' रखते आये हैं ।एक दफा एक कुनबेमें या कबीलेमें एक बार खून हुआ कि उसका

बदला कैना एक इज्जतकी बात समझी जाती है। आमतौरपर हम छोगोंमें मुआफी जैसी कोई चीज पायी ही नहीं जाती है। और इसलिये वहां सिर्फ बदलेसें हिसा, प्रतिहिसा और प्रतिहिसा

ही हैँ । इस तरह यह “विनाशवक्र कभी खत्म ही नहीं होता। इसमें शक नहीं कि अहिसा बधौर मुक्तिके हमारे पास आयी है।” सरहब प्रात्तके रिए जो कुछ सही हैबह हम सब छोगोंके छिए भी सही है । अवजानमें हुम जस हिसाके विनाशचन्नमें घूसते रहते हैं। थोड़ा सा विचार, विवेक और अ्मुभव इस

सककरमेंसे हमें निकाल सकते हैँ। हरिणत सेवक

७ अपतुभर, १९४३९

655

हि