पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अिसा

की भी कसौटी है । हालाँकि प्रस्तावमें कोई ऐसी बात नहीं कही गईं है,मगर कमेटौके इच्छानु-

सार सविनय-भंगके नियंत्रण तथा आयोजनका काम मेरे ऊपर छोड़ विया गया है । यह कहनेकी कोई भी जरूरत नहीं कि मेरे पास इसके सिवा कोई बल नहीं, न कभी था, कि रजिस्टरमें बर्ज और गेरदर्ज कांग्रेसजनोंका विशाल समूह कमेटी ढ/रा, या जब यंग इंडिया' और सम्नणीवस' निकलते थेतब उसके द्वारा और अब 'हुरिजन और'हरिजन-सेवक' द्वारा जारी की गयी हिदायतोंपर

जानबूझकर और स्वेच्छापुर्वक अमल करे । इसलिए जब सुझे मालूम हो कि मेरी हिदायतोपर कोई अमल नहीं होता, ती कांग्रेसजन देखेंगे।कि मेंचुपचाप सेदानसे हुट जाऊँगा । लेकित अगर लड़ाईका आम नियंत्रण सेरे हाथ रहता तो, से चाहुँगा कि अनुशासनका पूरी कड़ाईसे पालन हो । जहाँ तक म॑ देख सकता हूँ, जबतक कांग्रेसनन अहिसा और सत्यपर पहिलेसे ज्यावा ध्यान न देंगे और पूर्णअनुशासन न विखायेंगे तबतक किसी बड़े पैसानेपर सबिनय-भंगकी

कोई भी संभावना सहीं हैऔर जबतक अधिकारियों हारा हस इसके लिए घाध्य म किये जागें, उसकी कोई जरूरत भी नहीं पड़ेगी । हम जोवन-सरणके युद्धम प्रवृत्त हूं।हिसाका चातावरण हमारे आसपास छाया हुआ है ।

देशके लिए यहु भारी कसौटीकी घड़ी है। घपलेघाजीसे काम तहीं घलेगा। अगर कांग्रेसजनोंको ऐसा लगे कि उनमें अहिंसा नहीं है, अगर थे अंग्रेज अभिकारियोंके प्रति था कांग्रेसकी मुलालिफत करनेवाले अपने वेशवासियोंके प्रति अपनी कदुताकों दूर न कर सकें, तो उन्हेंखुलेआम यहू कह वेना चाहिए, भोर अहिसाका परित्याग कर मौजूदा बकिंग कमेटीको घवल देना श्ाहिए । इससे कोई नुकसान ते होगा । लेकिन फसेटी और उसकी हिदायतोंमें विषधास न रखते हुए

उसे कायभ रखनेसे बहुत बड़ी हाति होगी । जहाँतक मेंदेख सकता हूं, सत्थ और अहिसाका

कड़ाईके साथ पालम किये बगेर हिन्दुस्तानकों स्वतंत्रता नहीं मिल सकती । अगर मेरी सेना ऐसी हो कि जिन शस्म्रोंसे म॑ उसे सुसण्जित' करूँ, उनकी क्षमता उसे सन्देह हो, तो मेरे सेनापतित्वसे कोई लाभ न होगा । अपने वेशके शोषणका मेंजैसा ही पक्का धुल हैंजैसा कि कोई हो सकता है। बिदेशी जुएसे अपने देशको पूर्णमुक्त करनेके लिए भी भें उतना ही अधीर हूँ जितना कि कोई गरम से.गरम कांग्रेसवादी हो सकता है ।लेकिन एक भी अंग्रेज या भूसण्डरूपर किसी भो मानवप्राणीसे मुझे घृणा नहीं हे। मिन्नराष्ट्रोंकी अथर मेंमवद नहीं कर सकता, तो

उत्तक! सर्वनाश भी सेंनहीं चाहता । कांग्रेसकी सेरी आदापर ब्रिटिश सरकारने बुरी तरह पाती फेर विया है, मगर उनकी परेशानीसे में कोई फायदा तहीं उठाना चाहता । मेरा प्रयत्न और मेरी भार्थतो तो यही है औरहोगी, ग्रधाताध्य कम सेकम्त ससयके अत्वर' आपसे लड़नेबाऊे राष्ट्रोफे बीच सम्भानपुर्ण सुलह हो जाय। मेने यह जञाशा धाँध रपखी थी कि बजिदेन और हिन्हुस्तानके भीच सम्मानपुर्ण सुलह और साझेदारी ही जायगी और जो भीषण

रक्‍्तपात मानवताकों अपमानितकर छुध जीवसकों ही भाररूप धता रहा हैउससे बचनेका रास्ता लिकालनेमं शायद में अपना विनज्ञ भाग अदा कर सकूंगा । छेकित ईइ्बरकी इच्छा तो छुछ और हो थी । हरिजन-सेषक़ रे भकतुबर,

हि

ेल्‍ १९३९

कक

8