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आंधीजी उलेभाजमा हुए । प्रिसिपल रुद्रके जीवन-कालमं जब-जब दिल्‍ली आता था, उन्हींके घरपर ढहैरता था। इस उलेसाओंम और-और छोगोंके साथ मौहाना अबुछ करास आजाद, सरहूम

भौलाना अब्दुल बारी, मौलाना अब्दुल मजीद और मौलाना आजाव सुभातरी भी थे। ये नाम से अपनो यावदाउतसे ही लिख रहा हूँ । पहले दोकी तो मुझे अच्छी तरह याद है। बाकी उस समय न भी रहे हों तोबादर्म शामिल जझूर हो गये थे। मौलाना अबुल कलाम आजावने इस बहससें प्रमुख भाग लिया था। सबने यह फेसूा किया कि अहिसामें विदवरस करता इस्लाममें जायज ही नहीं, बल्कि जरूरी भो हे,क्योंकि इस्लाममें अहिसाकों हमेशा हिसासे

ज्यादा पसन्द किया गया हे । यह बात गौर करनेके काबिल हैकि सन्‌ १९२० में, जब कांग्रेसने अहिसाको स्वीकार किया, उससे पहलेकी यह घटना हे। मुसलसानोंके कई बड़े-बड़े जलसोंमें

मुस्लिम विद्वानोंने अहिसापर बहुतसे व्याख्यान और उपदेश दिये। बादमें बिना किसी दुविधाके सिक्स भी आये और उन्होंने अहिसापर सेरे घिचारोंको कान लागाफर सुना। थे महान्‌ और गौरवशाली विन थे। अहिसा तो संक्रामक ही साबित हुईं। उसके जादूसे जनतामें

इतनी जागृति हुई जितनी पहले इस वेश कभी नहीं देखी गयी थी । सब फोमोंने अनुभन

किया कि वे एक हूँ' और उन्होंने सोचा कि अहिसासे उन्हें एक ऐसी त(कत सिर गयी जिसका सु-

काबिला कोई कर नहीं सकता। वे उज़ले बिस गये और अब ऊपरके जेसे- सवालोंके जवाल देनेके लिए मुझे गम्भीरतासे बाध्य होना पड़ा रहा है। अहिसामें वह अड्धा में आपको नहीं

दे सकता जोकि आप उससें नहीं रखते हैं। वह भद्धा तोईश्वर ही आपको वे सकता है।

मेरी अद्धा तोअब भी वैसी ही अचल है।आप और आप जैसे दूसरोंकी मेरी प्रधृत्तियोपर सन्वेह करनेके वाबजूद भी सेरा यह दावा हैकि एक-दूसरेके धर्मके प्रति आबर एक शान्तिवायक समाजमें

स्थाभाषिक रुपसे ही होता है। विचारोंक! खुला घ्रात-प्रतिधात और किसी भी वक्षार्मे असम्भव है। धर्म हमारे स्वाभावकी बर्बेरताको संगत करनेके लिए है,उसे ढीला छोड़ वेनेके लिए नहीं। ईदबर फॉवल एक है, यथ्यपि नाम उसके अनेक हैं। क्या यह आप क्राशा नहीं करते कि से भापके

धर्मेका आदर' करूँ? यदि आप यह आधा करते है,तो क्या से आपसे नहीं चाह सकता कि जाप भी भेरे भर्मका जावर करें? बाप कहते हेकि मुसलमानोंकी हिन्दुजोंके साथ फूछ भी

समानता नहीं है। आपके इस अल्गावक्रे बावजूब भी संसार धीरे-धीरे विधवव्यापी भाईचारेफी ओर कदस घढ़ा रहा है। घहाँ ज्ञाकर मानव-जाति एक राष्ट्र हो जायगी। सामान्य लक्ष्यकी ओर जो कूच हो रहा है, उसे न तो आपही रोक सकते हूँ, व मेंरोफ सकता हूँ। पठानोंकी सामई बनानेका जवाब तो बावशाह सानसे मिलेगा। हमसे मिलूसेसे पहुलेही उन्होंने अआहिसाको स्वीकार कर लिया था। उनका विश्वास है कि पठानोंका अहिसाके दारा ही कुछ भविष्य बन सकता है। अहिंसा न होती तो और नहीं तो उनकी आपसी सूरेजी ही उन्हें

आगे बढ़नेसे रोके रहेगी और उनका ए्याल हैकि अहिंसाकों स्वीकार करनेके भाव ही पठान सीमाप्रान्तसें जम सके हैँऔर ईइवरके सेवक खुद।ईखिवसतगार घने हैं। हरिजन-सेवक १० फरमरी, ड

१९४०

कै जि.