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ग्राइव कास करते थे। यह भेहनत किसी को भाररूप नहीं लगती थी। उसमे आनन्द आता था।

शञामका समग्र पढ़ने-लिखनेमें जाता था। सत्याग्रही सेनाका अग्रणी -दल इन्हीं स्त्री, पुरुषों और लड़कोंका हुआ । इनसे ज्यादा वीर या सच्चे साथी सुझे नहीं सिल सकते थे । हिन्दुस्तानमे वक्षिण अफ्रीकाका-सा ही अनुभव रहा और मुझेभरोसा हैँकि उसमें कुछ सुधार ही हुआ। सभी लोग मानते हूँकि अहसदाबादका सजदुर-संगठन भारतमों सबसे बढ़िया है। उसका काम जिस ढंगसे शुरू

हुआ था उसी तरह चलता रहा तो अन्तमें बहाँकीमिलोंसें मौजूदा भालिकों और मजदूरोंफी मालिकी' होकर रहेगी । यह स्वाभाविक परिणाम त निकला तो पता चल जायगा कि संगठनकी अहिसामें खासियाँ थीं। बार्डोलीके किसानोंने बल्लभभाईको सरदारकी पवची दी और अपनी लड़ाई फतह की । बोरसद और सखेड़ाके किसानोंने भी बेस! ही किया । ये सब बरसोंसे रचनात्मक फार्यक्रस पर

अमल कर रहे हूं।मगर इस अमलसे उनके सत्याग्रही गुणोंका हास गहीं हुआ है । सुझे पूरा यक्ीन है कि सविनय-भंत्र हुआ तो अहमदाबावके मजदूर और बाडोली और खेड़ाके किसान भारतके और किसी भी हिस्सेके किसानों और मजदूरोंसे जोहर दिखानेमें पीछे नहीं रहेंगे ।चौततीस सालके

रात्य और भाहिंसाके लगातार प्रयोग और अनुभवसे मुझेदृढ़ विश्वास हो गया हैकि यवि जहिसाकं। ज्ञानपूर्वक शरीर-अ्रमके साथ संबंध न होगा और हमारे पड़ोसियोंके साथ रोजमर'कि व्यवहारमें

उसका परिचय न भिलेगा तो भहिसा टिक नहीं सकेगी । यह हैरचनात्मक कार्यक्रमका रहस्य । यह साध्य नहीं है,साधन है ; सगर है! इतना अनिवार्य कि उसे साध्य भी समझ लें तो बेजा नहीं ।

'अहिसक विरोधकीदाक्ति रचनात्मक कार्यक्रसपर ईसानवारीके साथ भमल करनेसे ही पेवा हो सकती है। हुरिजन-सेवक २७ जनवरी,

१९४०

जे

अहिंसा, इस्लाम ओर सिक्‍्ख धर्म '*

प्र०--सब धर्मोका आदर फरनेका उपदेश देकर आप इस्लामकी ताकतको तोड़ते हैं। आप पढानोंक्ी बच्दूर्क छीनकर उन्हें वामर्द बता वेसा चाहते हैं । इस हालतमें हममें भर

आपमें मेऊूतोकहीं होही नहीं सकता ।

'ध०--में नहीं जानता कि खिलाफतके विनोंमें इस संबंधर्में आपके वया विचार

थे। में आपको हालहीका थोड़ा इतिहास बता हूँ। खिलाफत-आंदोलनफी नौंब भेने हो डाली थो।

अली-अस्थुओंकी रिहाईके लिए जो हुूचल हुईं थी उससें भी सेरा हाथ भा।

इसलिए जब अली-बन्धु रिहा हुए तो थे और एवाजा अब्युल भणीव, ६ंबैच फुरेणी, भुअप्णम अली और में, हम सब मिल्ले और कार्यक्री एक योजना निकाली जिसे सब लोग जानते है। उस सबके साथ सेंने अहिसाके सब पहुलुऑपर चर्चा की और उन्हेंबताया कि सच्चे मुतलभानोंकी भाँति क्षगर थे अहितताकों स्वीकार त कर सके तो भेरे लिए उसके पास कोई जगहू नहीं

रहेगी। वे भेरी बातके कायल़,तो हो गये, मगर उन्होंने कहा कि बिना हमारे उस्लेभाजींकी ताईदकें वे इसपर अमल ते कर सकेंगे । औरइसलिए स्वर्गीय प्रिसिपल चढके सकानपर कुछ 8०३ न