पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/८५

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नोआखालीके हिन्दुओंको मेरी सलाह मेरे सलिकंदा-प्रवासके समय नोआखालोसे मनोरठ्जन बाबू और अन्य समिन्न अपने इलाफेके हिलुओंकी एसीबतोंके बारेसें मुझसे मिलने आये। मनोरंजन बाबू कुछ विनोसे इस विषय मुझसे पत्र-व्यवहार भी कर रहे थे। मेने शिकायतोंकी जाँच नहीं की है । इसके लिए मेरे पास

त वक्‍त था, म इच्छा थी। यह प्राप्तीय फांग्रेस तथा अन्तमें केन्द्रीय संस्थाके अधिकार-क्षेत्रकी बात है । लेकिन मुक्ते मोटे तोरपर सलाह वेनेमे कोई दिक्कत नहीं हुई। उनका भामला, कं्रोवेश, सक्‍्खर-प्रकरण जैसा ही है। मात्रामे बहुत ज्यादा अन्तर है। लेकिन मे पुरी तरह अनभव करता हैँ किनोआखालीभें जिस तरह की चिस्तुत गुण्डई फैली बतायी जातो हूँ,उसका सकाबरा कोई भी छोक चिर्बाधित सरकार सफलतापूर्वक नहीं कर सकती । यह तत्वतः एक आत्म-रक्षाका सामला है। आत्स-समस्सान और आबरूको रक्षा दूसरोंके जरिये नहीं फी जा

सर्फती । इनकी रक्षा तो हरेक स्त्नी-पुरुषको खुद करनो चाहिए। सरकार तो ज्यादा-रो-ण्यादा इतना कर सकती हूँकि अपराध या जुल्म हो जानेफे बाद अपराधीकी सजा वे वे। पर वह अपराध होने ही न' देनेका विश्वास नहीं दिला सकती--जहाँतक सजा रोफका फाम देती हैवहींतफ इस दिवासें वहु कुछ कर सकती है। आत्म-रक्षा हिसात्सक और अहिसात्मक वो तरीके की ही

सकती हूँ। मेंने सदा अहिसात्मक रक्षाकी सलाह दी हैऔर उसीपर जोर दिया है। लेकिन भें इतना सानता हैँकि हिसात्मक रक्षाकी तरह ही अविसात्मक रक्षाका भी जान भाप्त करता पड़ता है। हिसात्मक रक्षाके लिए जिस तरहुकी शिक्षा और तैयारीकी जरूरत पड़ती है

उससे इसकी शिक्षा और तेयारी भिन्न है। इसलिए अगर अहिंसात्मक आत्मरक्षणकी दावितका अभाष है, तो हिसात्मक साथनों और उपायोका आश्रय लेनेमे कोई हिचकिचाहुट नहीं होनी

चाहिए। किन्तु चूँकि भनोर॑जन धाबू एफ पुराने कांग्रेसी है, इसलिए उन्होंने कहा-«

“आप तो कहते हैंकिमेआत्मरक्षाके लिए भी प्रत्याक्रमण नहीं करूँगा ?” मेंने उत्तर विया-* “अनचश्य, भेरा मत तो यही है। लेकिन गया-कांग्रेंसमें एक प्रस्ताव पास हुआ था कि आत्सरक्षार्थ बरू-प्रयोग फांग्रेसियोंफे लिए क्षम्य है। भेनें कभी इस प्रस्तावकों उचित चहीं बताया

है। भगर आत्म्रक्षाफे लिए हिंसा क्षम्य सात ली जाय तो अहिंसा भिरर्थफ हो जाती है। आफ्रंमणकारी राष्ट्रके विरुद्ध राष्ट्रीय प्रतिरोध आत्मरक्षणके सिया और क्या है? इसक़िए

आपने "जिस स्थितिका वर्णन किया है उससें अपनो रक्षाके लिए यदि हिंसात्मक उपायोका सहारा लेनेकी सोचते हों तो मे कांग्रेससे अछय हो जानेंकी सलाह वूगा।” भनोरं॑जत बाधूने पूछा“ लिकित श्राव लोजिए, मेने गयावाला भ्रस्ताव स्वीकार कर लिया तो क्या पीड़ित हिन्दुओंकी रक्षा करनेमें सुझ्पर साम्प्रदायिकताका अपराध लगाया जा सकेगा ?” सेने उत्तर विया-“हगिज नहीं । पहली बात यह कि कांग्रेसी होनेंसे आपका हिन्दू होना खत्म भंहीं

हो ज्ाता। साम्प्रदायिकताके दोषी आप तब होंगे जब गलत या सही हर हारूतमें हिन्दुओंका

पक्ष छें। इस सामलेसे आप हिन्चुलोंकी रक्षा इसलिए नहीं करते कि वे हिन्दू है,बए्फि इस"

लिए करते हेकि वे पीड़ित हैं। मेंआजमा करूंगा कि क्षमर आप सुसलसानोंकों हिन्दुओं हारा देण्द