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अहिसा

पीड़ित होते बेखें तो उनकी भी रक्षा करें। कांग्रेसी सम्प्रदाय-भेद भावता हुँ,उसे गानता साहिए ।”

इसके बाद मिलनेवालोंने कांग्रेसके झगड़ोंपर भातचीत की और मुझसे कहा कि कांग्रेसकी तरफसे सहायता पानेसे निराश हो,जानेके कारण घहुतेरे हिंदू हिन्दू-महासभामें शामिल

हो गये हैं। उन्होंने मुझसे पुछा कि क्या हमलोग भी ऐसा कर सकते हैं। भेने उनसे कहा कि सिद्धान्ततः तो मुझे इसमें आपत्ति की कोई घात नहीं दिखायी देती । पर मेंइसका निर्णय महीं कर

सकता कि

होऊं और तो में उस इसके साथ

स्थानीय परिस्थितियोंके अनुसार यह उचित होगायानहीं। लेकिन अगर भे कांग्रेसी मुझे महसूस हो कि उस हेसियतसे में प्रभावदरुल्ली तरीकेपर कुछ नहीं कर सकता संस्थामें शासिरू होनेसे नहीं हिंचक्‌गा,जो प्रभावशाली ढंगपर सहायक हो सके । पर मेंने यह भी कह विया कि कोई जिम्मेदार कांग्रेसी कांग्रेस-संस्था्ें पदाधिकारी होले

हुए हिन्दु-महासभाका, जो स्पैध्टतः एक साम्प्रदायिक संस्था हं--सदश्य नहीं हो सकता। सारा सवाल करठिनाइयोंसे भरा हुआ है। इस अवसर पर शान्ति, सचाई और हिस्मतकी जरूरत है। अगर कांग्रेस प्रभावशाली रुपसे अहिसात्मक नहीं बनेंगी तो साम्प्रदायिकता फी विजय

निदिचत हैं। अगर वह अहिंसासे खेलबाड़ करेगी तो खुद आचरण साम्प्रदायिक हो जायेगी। क्योंकि कांग्रेसियोर्म हिन्दुओंका बहुमत है और अगर उन्हें अहिसाके प्रभावद्ञाली जपवोगका ज्ञान नहीं होगा तो फिर उनका हिसाकी लरफ बहुक जाना मिश्चिचत है। भेरे मनमें तो यह बात घिल्कुल स्पष्ठ हैकि कांग्रेस तभी असास्प्रवायिक रह सकती है, जब यह सब मामलोंमें अहिसात्मक रहे। ऐसा नहीं हो सकता कि यह सिर्फ शासकोंके प्रति अहिसात्मक रहे और दूसरोंके प्रति हिसात्मक हो। यह सार्म तो अयश और चिनादाका भागे हैँ।

हरिजन-सेवक

, 3 सारे, १९४०

] कं

सर्वोत्तम वृत्तियाँ केसे जगायें ? अंग्रेजोंके एक हिखुश्तानी हिमायती लिखते हैं।-+-

“बगर हमारा उद्देश्य अपनी भहिंसाके जरिये भंग्रेजोंकी भच्छी-से-अच्छी बृत्तियाँ जागृत करना और इस तरह आपसमें विश्वोस पैदा करना है,तो इसमें हम बुरी तरह असफल हुए हैं। हमने जो कुछ कहा है, उसके अनुसार किया नहीं |हमारी अहिसाका सबसे अच्छा समय (यानी

जब हमने इंगलैडके प्रति कम-सें-कर्म घृणा पैदा की) बह था, जब प्रान्तोंमें कांग्रेसका शासन था । गवर्नेरोंकेसाथ व्यक्तिगत सम्पर्कके कारण आपसे मिश्वास पैदा हुआ था । उस वक्त भी दिझ

हेषसे खाली न थे,लेकिन अब तो सारा वायुमण्डलही फिरसे इंगलेंडके प्रति घुणा-ही-घृणाके सारे तीत्र ही रहा हैं।सदृभ्नावकी जगह कठुता और विश्वांसकी जगह अधिदवास बढ़ रहा है । हमारे

सारे कामों. और वलीलोंसे अंग्रेजींकी बृरी-से-बुरी' वृत्तियाँ जागृत हो रही हैं। हमने अपनी! * अहिसाका या सबृभाव बढ़ानेकी इच्छाका क्या प्रत्यक्ष प्रमाण व्रिया है / बेशक, स्रदस्‍्म विप्रौह

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