पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९०

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अहिंसा उन्हें रखते हुए मुझे यह घोषणा करने दीजिए कि मैने जो शर्ते रखी है उनकी पूर्ति हुए बिना मै सविनय-भंगका एलान नहीं कर सकता। हरिजन-सेवक १३ अप्रैल, १९४० श्री जयप्रकाशका एक प्रस्ताव श्री जयप्रकाशनारायणने मेरे पास एक प्रस्तावका नीचे लिखा मसविदा भेजा था, और मुझे लिखा था कि अगर मैं इस प्रस्तावमें दी गयी तस्वीरसे सहमत होऊँ तो इसे रामगढ़ में होनेवाली कांग्रेस कार्यसमितिको सामने पेश कर है। प्रस्ताव इस प्रकार था:--- "कांग्रेस और राष्ट्र के सामने आज एक महान् राष्ट्रीय उथल-पुथलका अवसर उपस्थित है। आजादीकी आखिरी लड़ाई जल्द ही लड़ी जानेवाली है और यह सब ऐसे समय हो रहा है जब महान् शक्तिशाली परिवर्तनोंके द्वारा सारा ससार जड़मे हिलाया जा रहा है। दुनिया भर के विचारक लोग माज इस बात के लिए चितित है कि इस यूरोपीय युद्धके महानाशमसे एक ऐसी नयी दुनियाका जन्म हो, जिसकी जड़ राष्ट्रों-राष्ट्रों और मनुष्यो-मनुष्यों के बीच के सद्भायपूर्ण सहयोगपर कायम की गयी हो। ऐसे समय कांग्रेस स्वतंत्रताके अपने उन आवोंको निश्चित- रूपसे व्यक्त कर देना आवश्यक समझती है, जिनपर कि वह अड़ी हुई है और जिनके लिए वह जल्दी ही देशकी जनताको अधिक-से-अधिक कष्ट सहनेका न्यौता देनेवाली है। "स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रका नाम होगा कि वह राष्ट्रोंके बीचशान्ति स्थापना करे, सम्पूर्ण निःशस्त्रीकरण के लिए यलशील रहे 'और राष्ट्रीय भंगड़ोंको किसी स्वतंत्रतापूर्वक स्थापित अन्तर्राष्ट्रीय सत्ता द्वारा शान्तिपूर्वक निबटाने की कोशिश करे। वह खासतौरपर अपने पड़ोसी देशों के साथ,फिर वे महान् शक्तिशाली साम्राज्य हों या छोटे-छोटे राष्ट्र,मित्र बनकर रहने का यत्न करेगा और किसी भी विदेशी राज्य या प्रवेश पर अपना अधिकार जमाने की इच्छा न करेगा। "देशके सभी कायदे कानून सर्वसाधारण जनता द्वारा स्वतंत्रतापूर्वक व्यक्त की गयी इच्छाके अनुसार बनाये जायेंगे और देशमें भान्ति और सुव्यवस्था कायम रखने का अन्तिम आधार जनसाधारणकी स्वीकृति और सम्मति पर ही रहेगा। "स्वतंत्र भारतीय राष्ट्रमें जनताको सम्पूर्ण व्यक्तिगत और नागरिक स्वतंत्रता होगी एवं सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों में पूरी शाजादी दी जायगी। पर इसका यह मतलब नहीं होगा कि हिन्दुस्तानकी जनता अपनी राष्ट्रीय पंचायत द्वारा अपने लिए जो शासन-विधान तैयार मारेगी उसको हिंसा बारा उलट वेनको आजादी किसीको रहेगी।'