पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९१

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गांधीजी "देशकी राष्ट्रीय सरकार राष्ट्र के नागरिकोंके बीच किसी प्रकारका भेदभाव न रखेगी। प्रत्येक नागरिकको समान अधिकार रहेंगे। जन्म और परम्पराके कारण मिलनेवाली सभी सुविधाएँ या भेदभाव मिटा दिये जायेंगे । न तो सरकार द्वारा किसीको कोई पद या उपाधि दी जायगी और न परम्परागत सामाजिक दर्जेके कारण ही कोई किसी उपाधिका हकदार माना जायगा । "राज्यका राजनीतिक और आर्थिक संगठन सामाजिक न्याय और आर्थिक स्वतंत्रताके सिद्धान्तोंपर किया जायगा। इस संगठनके फलस्वरूप जहाँ समाजके प्रत्येक व्यक्तिकी राष्ट्रीग आवश्यकताओं की पूर्ति होगी,वहाँ इसका उद्देश्य केवल भौतिक आवश्यकताओंकी तृप्ति ही न रहेगा बल्कि अपेक्षा यह रखी जायगी कि इसके कारण राष्ट्रका हर एक व्यक्ति स्वास्थ्यपूर्ण जीवन बिता सके और अपना नैतिक और बौद्धिक विकास कर सके। इसके लिए और समाजमें समताकी भावनाको स्थापित करनेके लिए राज्य द्वारा छोटे पैमानेपर, चलनेवाले ऐसे उद्योग-धंधोंको प्रोत्साहित किया आयगा जो व्यक्तियों द्वारा या सहयोगी संस्थाओं द्वारा सभीके समान हितकी वृष्टिसे चलाये जायेंगे। बड़े पैमानेपर सामूहिक रूपसे पलनेवाले सभी उद्योग-धंधोंको अन्तमें जाकर इस तरह चलाना होगा कि जिससे उनका अधिकार और आधिपत्य व्यक्तियों के हाथसे निकलकर समष्टिके हाथमें आ जाय । इस लक्ष्यकी सिद्धि के लिए राज्य यातायात के भारी साधनों, व्यापारी जहाजों, खानों और दूसरे बड़े-बड़े उद्योग-धंधोंका राष्ट्रीयकरण शुरू कर देगा । वस्त्र- व्यवसायका प्रबन्ध इस तरह किया जायगा कि जिससे उत्तरोत्तर उसका केन्द्रीकरण के और विकेन्द्रीकरण बढ़े। "गाँवों के जीवनका पुनः संगठन किया जायगा, उन्हें स्वतंत्र स्वायत्त इकाई बनाया जायगा और जहाँतक संभव होगा अधिक-से-अधिक स्वावलंबी बनानेका यत्न किया जायगा। वेशाके जमीन सम्बन्धी कानूनोंमें पड़-मूलसे सुधार किया जायगा, और यह सुधार इस सिद्धान्तपर होगा कि जमीनका मालिक उसे जोतनेवाला ही हो सकता है । और हर एक काश्तकारके पास उसको ही जमीन होनी चाहिए, जिससे वह अपने परिवारका उचित रीतिसे भरण-पोषण कर सके। इससे जहाँ एक ओर जमींदारीकी अनेक प्रथाएँ बन्द हो जायेंगी, वहाँ खेतोंमें गुलागीकी प्रथा भी नष्ट हो जायगी । "राज्य वर्गों के हितों या स्वार्थों की रक्षा करेगा,लेकिन अब ये स्वार्थ गरीबों या पदद- हितोंके स्वार्य में बाधक होंगे तो राज्य गरीबों और पददलितोंके स्वार्थकी रक्षा करके सामाजिक न्यायको तुलाको समतोल रखेगा। "राज्य द्वारा चलाये जानेवाले राज्य के सभी उद्योग-धंधोंके प्रबन्धमें मजदूरोंको अपने चुने हुए प्रतिनिधि भेजनेका अधिकार रहेगा और इस प्रबन्धमें उनका हिस्सा सरकारी प्रतिनिधियों के बराबर होगा। "देशी राज्यों में सम्पूर्ण प्रजातंत्रात्मक सरकारें स्थापित होगी और नागरिकोंकी समताके तथा सामाजिक भेवभावको मिटाने के सिद्धान्त के अनुसार राजामों और नवाबोंके रूपमें देशी रिया- सतोंमें कोई नामधारी शासक नहीं रहेगे।" "