पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गांधीजी । शासन-व्यवस्था कायम करना चाहते है, उसका आधार उन्होंने हिंसाको ही माना है, तो मुझे खुशी हुई। मेरा यह पक्का विश्वास है कि जिस चीजको हिंसा कभी नहीं कर सकती, अहिंसात्मक असहयोग द्वारा सिद्ध की जा सकती है और उससे अंतमे जाकर अत्याचारियोंका हुण्य-परिवर्तन भी हो सकता है। हमने हिन्दुस्तानमें अहिंसाको उसके अनुरूप मौका अभीतक विया ही नहीं, फिर भी आश्चर्य है कि अपनी इस मिलावटी अहिंसा द्वारा भी हम इत्तनो शक्ति प्राप्त कर सके है। जमौसके बारे में श्री जयप्रकाशकी सूचनाएँ भड़कानेवाली हो सकती है। लेकिन वे वरमसल वैसी है नहीं। प्रतिष्ठिस जीधन के लिए जितनी जमीनको आवश्यफता है, उससे अधिक किसी आदमोके पास नहीं होनी चाहिए। ऐसा कौन है, जो आज इस हकीकतसे इन्कार कर सके कि आम जनताको घोर गरीबीका मुख्य कारण आज, यही है कि उसके पास उसकी अपनी कही जानेवाली कोई जमीन नहीं हैं ? लेकिन यह याद रखना चाहिए कि इस तरह के सुधार ताबड़तोड़ नहीं किये जा सकते। अगर ये सुधार अहिंसात्मक तरीकोंसे करने हैं, तो जमींदारों और गैरजगीवारों दोनोंको सु- शिक्षित बनाना लाजिमी हो जाता है। जमींदारोंफो यह विश्वास दिलामा होगा कि उनके साथ कभी जोर जबर्षस्ती नहीं की जायगी, और गैरजमीदारोंको यह सिखाना और समझाना होगा कि उनसे उनकी मर्जीक खिलाफ जबरन कोई काम नहीं ले सकता, और कष्ट-सहन या अहिंसाकी कलाको सौखकर वे अपनी स्वतंत्रताप्राप्त कर सकते हैं। अगर इस लक्ष्यको हमें प्राप्त करना है। तो ऊपर मैने जिस शिक्षाका जिक किया है उसका आरम्भ अभीसे हो जाना चाहिए। इसके लिए पहली जरूरत ऐसे वातावरणको तैयार करने की है, जिसमें पारस्परिक आवर और सब- भावका सुमेल हो । उस अवस्थामें वर्गों और आम जनताके बीच किसी प्रकारका कोई हिंसा- स्मक संघर्ष हो नहीं सकता। इसलिए यद्यपि अहिंसाकी वृष्टिसे श्री जयप्रकाशको सूचनाओंका सामान्य समर्थन करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं मालूम होती, तो भी मै राजाओं सम्बन्धी उनको सूचनाका समर्थन नहीं कर सकता। कानूनको वृष्टिसे वे स्वतंत्र हैं। यह सच है कि उनकी स्वतंत्रताका कोई विशेष मूल्य नहीं है, क्योंकि एक प्रबल शक्ति उनका संरक्षण करती है। लेकिन हमारे मुका- बिलेमें वे अपनी स्वतंत्रताका दावा कर सकते हैं। श्री जयप्रकाशकी प्रस्तावित सूचनाओं में जो बातें कहीं गयी है, उनके अनुसार अगर अहिंसात्मक साधनों द्वारा हम स्वतंत्र हो जायें, तो उस हालतमें मैं ऐसे किसी समझौतेको कल्पना नहीं करता, जिप्तम राजा लोग अपनेको खुद ही मिटाने को तैयार होंगे। समझौता किसी भी तरहका क्यों न हो, राष्ट्रको उसका पूरा- पूरा पालन करना ही होगा। इसलिए मैं तो सिर्फ ऐसे समझौतेकी ही कल्पना कर सकता हूँ जिसमें बड़ी-बड़ी रियासत अपने वर्णको कायम रखेंगी। एक तरहसे यह चीज आजको स्थिति कहीं बढ़कर होगी, लेकिन दूसरी दृष्टि से रामाओंको सत्ता इतनी सीमित रह जायगी कि जिससे वेशी रियासतों की प्रजाको अपनी रियासतों में स्वापस-शासनके वे ही अधिकार प्राप्त होतो, मो हिन्दुस्तान के दूसरे हिस्सोंकी जमताको प्राप्त रहेंगे। उनको भाषण और लेखन व मुद्रणको ।